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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ ० ७ सू० ८ हेतुस्वरूपनिरूपणम् ५७५ - प्रतिपादयति- 'पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा - हेउणा जाणइ, जाव- हेउणा छउमस्थमरणं मरइ' पञ्च हेतवः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा हेतुना अनुमानोत्थापकेन जानाति - अनुमेयं साध्यम् अनुमानं विनैव सम्यग् अवगच्छति सम्यग्दृष्टित्वात् - इति प्रथमः १, एवं यावत् - हेतुना सामान्यतः पश्यति, इति द्वितीयः २ हेतुना बुध्यते श्रद्द धाति, इति तृतीयः ३, हेतुना अभिसमागच्छति - प्राप्नोति, इति चतुर्थः ४ तथा अकेवलित्वात् हेतुना प्रशस्ताध्यवसानादिना छद्मस्थमरणं म्रियते करोति, इति पञ्चमः ५ । अथ मिध्यादृष्टिमाश्रित्य पञ्चविधान् हेतून् प्रतिपादयति-' पंच हेऊ पण्णसा, तं जहा - हेउ ण जाणइ, जान-अन्नाणमरणं मरइ ' पञ्च हेतवः क्रिया वर्णन किया जाता है । ( पंच हेउ पण्णत्ता ) हे गौतम! पांच हेतु प्रज्ञप्त हुए हैं - ( तं जहा ) जैसे - ( हेउणा जाणइ, जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरइ) अनुमानो-स्थापक हेतु द्वारा जो अनुमेयपदार्थ को सम्यदृष्टि होने से जानता है एक वह हेतु है इसी तरह से जो हेतुके द्वारा सामान्य रूप से साध्य को देखता है, यह द्वितीय हेतु है, इसी तरह जो हेतु के द्वारा उसके साध्यार्थ का श्रद्धान करता है वह तृतीय हेतु है, हेतुके द्वारा जो साध्यार्थको प्रप्त करता है वह चतुर्थ हेतु है तथा अकेवली होने के कारण जो प्रशस्त अध्यव साथ आदि रूप हेतु द्वारा छद्मस्थमरण करता है वह पांचवां हेतु है । अब मिथ्यादृष्टि को आश्रित करके पांच प्रकार के हेतुओं का प्रतिपादन किया जाता है- ( पंच हेऊ पण्णत्ता) क्रिया भेद से पाँचहेतु प्रतिपादित हुए हैं - वे इस प्रकार से है - ( हेउण जाणइ जाव अन्नाणमरणं मरइ) हेतु द्वारा व्यवहार करने वाला होनेके कारण मिथ्या हवे सूत्रभर मी रीते हेतुभानुं प्रतिपाहन उरे छे - ( पांच हेऊ पण्णचा ) हे गौतम! हेतु पांथ ह्या छे, ( तजहा ) व ( हेउणा ज णइ, जाव उणा छउमत्थमरणं मरइ ) अनुमानात्थाय हेतु द्वारा ? अनुभेय यहार्थने સાધ્યને સમ્યગ્દષ્ટિ હોવાથી જાણે છે, તે પહેલા હેતુ છે. એજ પ્રમાણે જે હેતુ દ્વારા સામાન્ય રૂપે સાધ્યને દેખે છે, તે બીજો હેતુ છે. એજ પ્રમાણે જે હેતુ દ્વારા તેના સાધ્યા પર શ્રદ્ધા રાખે છે, તે ત્રીજો હેતુ છે. હેતુ દ્વારા જે સાધ્યાને પ્રાપ્ત કરે છે તે ચેાથે! હેતુ છે. અને અકેવલી હોવાને કારણે જે પ્રશસ્ત અધ્યવસાય આદિરૂપ હેતુ દ્વારા છદ્મસ્થમરણુ મરે છે, તે પાંચમા હેતુ છે, હવે મિથ્યાર્દષ્ટિને અનુલક્ષીને પાંચ પ્રકારના હેતુઓનું પ્રતિપાદન કરવામાં आवे छे - ( पंच हेऊ पण्णत्ता ) डियाना लेहथी पांय हेतु उद्या छे, ( त जहा ) साप्रमाणे छे - ( छेउ णे जाणइ जाव अन्नाणमरणं मरइ ) मिथ्यादृष्टि पुरुषने श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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