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________________ ५७४ भगवती सूत्र " 9 9 वोधात् इति द्वितीयः २, हेतु बुध्यते - सम्यक्तया श्रद्धत्ते, ' बुध्यते ' अस्यसम्यकश्रद्धानविकत्वात् इति तृतीयः ३ तथा हेतुम् अभिसमागच्छति साध्यसिद्धौ व्यापारणतः सम्यक्तया प्राप्नोति इति चतुर्थः ४ तथा हेतुम् अध्यवसानादिमरणकारणयोगात मरणमपि हेतुस्तं हेतुमदित्यर्थः, छद्मस्थमरण म्रियते करोति, न केवलमरणं तस्याs हेतुकत्वात् नापि अज्ञानमरणम् तस्य सम्यग्ज्ञानित्वात्, अज्ञानमरणस्याग्रे वक्ष्यमाणत्वाच्च, इति पञ्चमः ५ । प्रकारान्तरेणापि हेतूनेव पुनः अपने साध्य के साथ अविनाभावरूप से सामान्यतः जानता है - देखता है - यह द्वितीय हेतु है । तथा - ( हेउं बुज्झइ ) हेतु अपने साध्य के साथ अविनाभूत होकर ही हेतुरूप से बनाता है-ऐसा जो श्रद्धान् करता है । वह तृतीय हेतु है यहां पर ' बुधू ' धातु का अर्थ सम्यक् श्रद्धान् करना ऐसा हुआ है । (हेउ अभिसमागच्छइ) साध्य की सिद्धि में उनके उपयोग करने से जो उसे प्राप्त करलेता है यह चौथा हेतु है । ( हेउ छमत्थमरणं मरह) अध्यवसाय आदि हेतु जो कि-मरण के कारण होते हैं इनके संबंध से छद्मस्थमरण भी हेतु कहा गया है जो इस प्रकार के हेतुरूप छद्मस्थमरणको करता है वह पांचवां हेतु है । केवलिमरण को यहाँ हेतु में अन्तर्भूत नहीं किया गया है कारण वह अहेतुक होता हैं। तथा अज्ञानमरण भी हेतुमें नहीं गिना है क्यों कि वह अज्ञानियोंके मिथ्यादृष्टियों के होता है-और छद्मस्थमरण सम्यग्ज्ञानियों के होता है अज्ञानमरण का कथन आगे किया जाने वाला है । इस तरह ( हेउ छउमत्थमरण मरह) यह पांचवां हेतु है। दूसरी तरह से भी हेतुओं का "< સાધ્યની સાથે અવિનાભાવરૂપે સામાન્ય રીતે દેખે છે, તે હેતુના ખીજો લેક छे. ( हेउ बुज्झइ ) हेतु पोताना साध्यनी साथै अविनालाव३ये रहीने ४ हेतु રૂપે પ્રકટ થાય છે, એવી જે શ્રદ્ધા રાખે છે, તેને હેતુના ત્રીજો ભેદ કહ્યો છે. महीं' बुध्' धातुना સમ્યક્ શ્રદ્ધા કરવી ” એવા અર્થ કરવાના છે. ( हेउ अभिसमागच्छ ) साध्यनी सिद्धियां तेना उपयोग साथी ने तेने आस उरी से छे, या थोथा हेतु छे. ( हेउ' छउमत्थमरणं मरइ ) अध्यवसाय આદિ હતુ કે જે મરણુના કારણ હોય છે, તેના સબંધથી છદ્મસ્થમરણને પણ હેતુરૂપે પ્રકટ કર્યું છે. જે આ પ્રકારના હેતુરૂપ છદ્મસ્થમરણને પ્રાપ્ત કરે છે, તેને પાંચમે હતુ કહ્યો છે. કેલિમરણના અહીં હતુમાં સમાવેશ કરવામાં આવ્યા નથી, કારણ કે તે અહેતુક હોય છે. તથા અજ્ઞાનમરણુને પણ હેતુમાં સમાવેશ કરાયા નથી, કારણ કે અજ્ઞાનીઓ-મિથ્યા ષ્ટિએ એવુ' મરણ પ્રાપ્ત કરે છે. છાસ્થમરણુ સભ્યજ્ઞાનીએ પામે છે. અજ્ઞાનમરણનું પ્રતિપાદન આગળ કરવામાં આવશે. આ રીતે છદ્મસ્થમરણને પાંચમે હતુ કહ્યો છે. श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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