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बनेवचन्द्रिका काश०५३०१० ७ नेरविकानां सारंभानारंभादि निरूपणम् १६५
भम-पा-स्तूप-खातिका-परिवाः परिगृहीताः भवन्ति, तत्र देवकुलं देवस्थान विशेषः, आश्रमः तापसनिवासस्थानम् , प्रपा-पानीयशाला, स्तूपः 'चोतरा' इतिभाषामासिद्धः खातिका - उपरिविस्तीर्णाऽधःसंकीर्णखातरूपा, परिखाउपरि अधश्च समानखातरूपा । 'पागार-अट्टालग-चरिय-दार-गोपुरा परिगहिया भांति' प्राकारा-हालक-चरिका-द्वार-गोपुराणि परिगृहीतानि भवन्ति, तत्र पाकारः 'परकोटा' इतिभाषा प्रसिद्धः, अट्टालाः माकारोपरिरचित आश्रयविशेषः 'अटारी' इतिभाषा प्रसिद्धः, चरिका-प्रासाद-प्राकारयोर्मध्ये हस्त्यादिगमनमार्गः, द्वार-गृहप्रवेशभागः, गवाक्षो वा, गोपुरं-पुरद्वारम् । 'पासाय-घर-सरण-लेणआवणा परिग्गहिया भवंति । तत्र प्रासादः राजगृहम् , गृहम्-सामान्यगृहम् , शरगम्-तृणमयगृहम् , पर्णगृहं वा, पत्रगृहिमित्यर्थः लयनं पर्वते उत्कीर्णगृहम् , आपणः उनके परिग्रहस्वरूप स्थान कहे गये हैं। (देवउलासमपवांथूभ खाइय परिखाओ परिग्गहियाओ भवंति) इन पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों द्वारा देवकुल -व्यन्तर देवस्थानविशेष, आश्रम-तापसजनों का निवासस्थान, प्रपा पानीयशाला, स्तूप-चोतरा, खातिका-ऊपर विस्तीर्ण और नीचे संकीर्ण जो विशाल कुआ जैसा गर्त होता है उसका नाम खातिका है। ऊपर और नीचे जो रचना में समान होता है और कोट को चारों ओर से घेरे हुए जो जल से भरा रहता है उसका नाम खातिका है। (पागारअट्टालग-चरिय-दार-गोपुरा परिग्गहिया भवंति) प्राकार-परकोटा, अहालक प्राकार के ऊपर बना हुआ आश्रयविशेष जिसे अटारी कहते हैं, चरिका प्रासाद और प्राकार के बीच का रास्ता-जिस पर हाकर हाथी वगैरह आते जाते रहते हैं, बार-गृह में प्रवेश करने का मार्गदरवाजा, अथवा-गवाक्ष, गोपुर-पुरद्वार " पासाय-घर-सरण-लेणस्थान si 2. (देवउलासमपवाथूम खाइय, परिखाओ परिमगहियाओ भवति) દેવકુલ (વ્યન્તર દેવસ્થાન વિશેષ), આશ્રમ (તાપસેનું નિવાસ્થાન) પ્રપા (५ ), स्तू५ (व्यात।), माति(७५२थी विस्ती अन नयेथी સાંકડી વિશાળ કુવા જેવી હોય છે તેને ખાતિકા કહે છે), પરખાતિકા (કિલ્લાની ચારે બાજુ પાણીથી ભરેલી ખાઈ–તે ઉપર અને નીચે સરખી પહોળી डाय ), माहि स्थानाना तो परियड ४रे छे. (पागार, अट्टालग, परिय, दार, गोपुरा परिग्गहिया भवति) प्रा१२ (८), महाति (AAN-द्वानी ઉપર આવેલું આશ્રય સ્થાન) ચરિકા (પ્રાસાદથી કેટ સુધીને રસ્તે), દ્વાર (દરવાજા–ઘરમાં પ્રવેશ કરવાનો માર્ગ) ગેપુર (નગરમાં પ્રવેશ કરવાના Pain) मा स्थानानात परिव ३२ . (पासाय, पर, सरण, लेण,
श्री. भगवती सूत्र:४