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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०५ उ०७ सू०५ परमाणुपुदगलादीनां निरूपणम् ५२७ % व्यम्-वक्तव्यम् । तथा च एकगुणकालकादीनां पुद्गलानाम् अन्तरकालः एकगुण. कालकादिपुद्गलानां स्थितिकालसमान एव वेदितव्यः । यतो यदेव एकस्यावस्थानं तदेवान्यस्यान्तरम् , तच्च असंख्येयकालमानमित्यवसेयम् । गौतमः पृच्छति-'सद्दपरिणयस्स णं भंते' ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ?' हे भदन्त ! शब्दपरिणतस्य खल पुद्गलस्य अन्तरम् अन्तरकालः कालतः कियचिरं कियत्कालं भवति ? भगवानाह-' गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं' हे गौतम ! शब्दपरिणतस्य खलु पुद्गलस्य अन्तरकालः जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । गौतमः पृच्छति-' असदपरिणयस्स ण भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ चाहिये । इस तरह इस कथन से यही बात प्रमाणित की गई है कि एक गुण कृष्णादि वर्णवाले पुद्गलों का अन्तर काल और एक गुण कृष्णादि वर्णवाले पुद्गलों का स्थिति काल ये दोनों समान ही हैं, ऐसा जानना चाहिये, क्यों कि जो एक का अवस्थान है वही अन्य का अन्तर है और वह असंख्यात काल प्रमाण है, अब गौतम स्वामी प्रभु से यह पूछते हैं-(सहपरिणयस्सणं भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होह ) हे भदन्त जो पुद्गल स्कन्ध शब्द रूप में परिणत हो गया है उस पुद्गल का अंतर काल कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं( गोयमा ) हे गौतम! (जहण्णेणं एग समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं) शब्द रूप से परिणत हुए पुद्गल स्कन्ध का अन्तर काल जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से असंख्यात काल का है । ( असहपरिणयस्स ण भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ) हे भदन्त ! अशપણ સમજ. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે કૃષ્ણ આદિ ગુણના એક અદિ અંશવાળા પુદગલેને જે સ્થિતિકાળ આગળ કહ્યો છે, એજ અંતરકાળ અહીં ગ્રહણ કરે. તે અંતરકાળ જઘન્ય એક સમયને અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાતકાળને સમજો. ___ -(सहपरिणयस्स ण भंते ! पोग्गलस्स अंतर कालओ केवच्चिर' होइ १) महन्त ! पुस २४५ श६३२ परिणभ्या राय छ, तह. મલ કમ્પને અંતરકાળ કેટલો હોય છે? उत्तर-(गोयमा ! जहण्णेण एगं समय, उक्कोसेण' अस खेज्ज' काल) હે ગૌતમ! શબ્દરૂપે પરિણમેલા પુદ્ગલ સ્કન્ધને અંતરકાળ ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળને હોય છે. श्रीभगवतीसत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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