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________________ ५२६ भगवतीखत्रे एगं समय, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं' हे गौतम ! एकप्रदेशावगाढस्य निष्पकम्पस्य पुद्गलस्कन्धस्य अन्तरकालः जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षण आवलिकायाः असंख्येयं भागं भवति, । ' एवं जाव-असंखेज्जपएसोगाढे' एवं तथैव यावत्-असंख्येयप्रदेशावगाढो वेदितव्यः । यावत्करणात्-द्विपदेशावगाढनिम्मम्पस्कन्धपुद्गलादारभ्य - संख्यातप्रदेशावगाढनिष्पकम्पपुद्गलस्कन्धान्तं संग्राह्यम् । 'वन्न-गंध-रस-फास-सुहुमपरिणय-वायरपरिणयाणं' वर्ण-गन्धरस-स्पर्श-सूक्ष्मपरिणत-बादरपरिणतानाम् ' एएसिं जं चेव संचिट्ठणा तं चेव अंतरं पि भाणियव्वं ' एतेषां वर्णगन्धादीनां या एव संस्थितिः यावानेव संस्थितिकाल उक्तः, सा एव तावदेव तावत्परिमितमेव अन्तरमपि अन्तरकालोऽपि भणितस्था में है तो ऐसे उस निष्कंप अवस्था में रहे हुए एक प्रदेशावगाही पुदल का अंतर काल कितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं ( गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजइभाग) एक प्रदेशावगाही निष्प्रकप पुद्गल स्कंध का अन्तर काल जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भागप्रमाण है। ( एवं जाव असंखेजपएसोगाढे ) इसी तरह से छिप्रदेशावगाढ निष्प्रकप पुद्गल स्कंध से लेकर संख्यातप्रदेशावगाढ निष्प्रकंप पुद्गल स्कंध का और असंख्यातप्रदेशावगाढ निष्प्रकप पुद्गल स्कन्ध का अन्तर काल जानना चाहिये। (वन्न-गंध-रस-फास-सुहम परिणय-बायर परिणयाणं एएसिं जे चेव सचिट्ठणा तं चेव अंतरंपि भाणिय ) वर्ण गंध, रस, स्पर्श इनका तथा सूक्ष्मपरिणत् बादर परिणत पुद्गल स्कन्धों का जो संस्थिति काल कहा गया है वही इनका अन्तर काल कहना કેટલે સમય લાગે છે? उत्तर--(गोयमा ! जहण्णेण एग समय, उक्कोसेण आवलियाए अस. खेज्जइ भागं ) 3 गौतम! मे प्रशनी अवगाहना नि५ पुसस સ્કન્ધને વિરહકાળ ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં વધારે लिन असभ्यातमi l प्रभाए जन छ. (एवं जाव असंखेन्ज पएसोगाढे) मे प्रभारी ने प्रशानी मानावा नि०५ पास સ્કન્ધોથી લઈને અસંખ્યાત પન્ડના પ્રદેશની અવગાહનાવાળા નિષ્કપ પુદુसन्धाना मत२४॥ विष ५४ समन्. ( वन्न, गंध, रस, फास, सुहम परिणय, बायर परिणयाण एए सिं जंचेव सचिटणा तथेत्र अंतरपि भाणियव ) તેમના વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ તથા સૂક્ષમ પરિણમન, સ્થૂલ પરિણમન આદિને જે સંસ્થિતિ કાળ કહેવામાં આવ્યું છે, એ જ તેમને અંતરકાળ (વિરહકાળ) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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