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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०५ उ०७सू०५ परमाणुपुद्गलादीनां स्वरूपनिरूपणम् ५०९ कायाः असंख्येयभागम् , अशब्दपरिणतो यथा एकगुणकालकः । परमाणुषुद् गलस्य खलु भदन्त ! अन्तर कालतः किच्चिर भवति ? गौतम ! जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । द्विप्रदेशिकस्य खलु भदन्त ! स्कन्धस्य अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन एक समयं, उत्कर्षण अनन्तं कालं, एवं यावत् अनन्तप्रदेशिक: एकप्रदेशावगाढस्य खलु भदन्त ! परिणत हुआ पुद्गल उस स्थिति में कितने समय तक बना रहता है। ( गोयमा ) हे गौतम ! ( जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं असहपरिणए जहा एगगुणकालए ) जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भाग तक, शब्द रूप में परिणत हुआ पुद्गल उस स्थिति में बना रहता है । तथा अशब्द. रूप स्थिति में परिणत हुआ पुद्गल उस स्थिति में कितने समय तक रहता है ? तो इसका समाधान यह है ति जिस प्रकार से एक कृष्णगुण के अंश वाला पुद्गल जितने समय तक उस गुण अंश में परिणत बना रहता है उसी प्रकार से यहां पर भी समझना चाहिये। (परमाणुपोग्गलस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवञ्चिरं होह) हे भदन्त ! जिस परमाणु ने अपनी परमाणुरूप पर्याय छोड़कर स्कन्ध पर्याय धारण कर ली है और फिर वह वही परमाणुरूप पर्याय धारण करे-तो इसमें काल की अपेक्षा कितना अन्तर पड़ता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहणणं एग समय, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं ) कम से कम अन्तर-विरह काल श४३५ परिभेतुं पुरस ते स्थितिमा सो समय २९ छ ? (गोयमा!) गीतम! ( जहण्णेण' एग समयं उक्कोसेण आवलियाए असखेजइभाग असहपरिणए जहा एगगुणकालए ) श६३ परिणभेतुं पुरस माछामा माछा એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે આવલિકાના અસંખ્યાતમાં ભાગના કાળ સુધી એની એ સ્થિતિમાં રહે છે. કૃષ્ણગુણના એક અંશવાળું પદ્રલ જેટલા સમય સુધી એ સ્થિતિમાં રહે છે, એટલે જ સમય અશબ્દરૂપે પરિમેલું પુલ પણ એની એ સ્થિતિમાં રહે છે. (परमाणुपोग्गलस्स णं भंते ! अतरं कालओ केवच्चिर होइ) है ભદન્ત ! જે પરમાણુએ પિતાની પરમાણુ પર્યાયને છોડી દઈને સ્કન્ય પર્યાય ધારણ કરી લીધી હોય, અને ફરી પાછું તે એ જ પરમાણુ રૂપ પર્યાયને धार ७२, तो तमा न अपेक्षा दुं मत२ ५३ छ ? (गोयमा! श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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