SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०५ उ७७सू०४ परमाणुपुद्धलादीनां स्पर्शनानिरूपणम् ५०१ त्रिपदेशिकं स्पर्शितः स्पर्श कारितः एवं तथा स्पर्शयितव्यः स्पर्श कारयितव्या यावत्-अनन्तप्रदेशिकम् , यावत्करणात् चतुष्पदेशिकादारभ्य असंख्यातप्रदेशिकपर्यन्तं संग्राहयम् तथा च चतुष्पदेशिकस्कन्धप्रभृतिविषयेऽपि प्रथमत्रिकैरन्तिमत्रिकैश्च विकल्पैः स्पर्शविषयकालापकाः स्वयमूहनीयाः । गौतमः पुनः पृच्छति'तिपएसिएणं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा' हे भदन्त ! त्रिप्रदेशिकः खलु स्कन्धः परमाणु पुद्गलं स्पृशन् किं देशेन देशं स्पृशति' इत्यादि नवविकल्पविषयिणी गौतमस्य पृच्छा प्रश्नः। भगवानाह- तृतीय छठ्ठ-नवमेहि अनुसार त्रिप्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करता है इसी प्रकार से वह यावत अनन्त प्रदेशी स्कंध को भी स्पर्श करता है। यहां यावत् शब्द से चतु. प्रदेशी स्कन्ध से लेकर संख्यात प्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात प्रदेशी स्क. न्ध इन सब स्कन्धों का ग्रहण किया गया है। इस तरह चतुष्प्रदेशीक स्कन्ध से लेकर यावत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध को स्पर्श करने के विषयों प्रथम के तीन और अन्त के तीन विकल्पों को लेकर आलापक अपने आप बना लेना चाहिये। गौतम स्वामी पुनः प्रभु से पूछते हैं-तिपएसिए णं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा) हे भदन्त । मेरी अथ यह जानने की इच्छा हो रही है कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध परमाणु पुद्गल को जो स्पर्श करता है वह किस पद्धति के अनुसार करता है? क्या वह अपने एकदेश द्वारा परमाणुपुद्गल के एक देश का स्पर्श करता है ? इत्यादि पूर्वोक्त रूप से यहां नौ विकल्प प्रश्न के रूप में उद्धा. वित कर लेना चाहिये । इस विषय में उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से જ્યને સ્પર્શ કરે છે, એ જ રીતે અનંત પ્રદેશી પર્વતના સ્ત્રોનો પણ २५श ४२ छ. सही पर्यन्त ( यावत् ) ५४थी यारथी ६० प्रशाणा २४-धी, વખ્યાત પ્રદેશી ઔધે અને અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધો ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. આ રીતે ચાર પ્રદેશવાળા સ્કધથી લઇને અનંત પ્રદેશવાળા સ્કન્ધ પર્ય. ન્તના કોની દ્વિપ્રદેશી સ્કન્ધ સાથેની સ્પર્શનાના વિષયમાં આલાપકે સમજી લેવા તે આલાપકોનાં જવાબોનાં સૂત્રોમાં પહેલાં ત્રણ અને છેલ્લાં ત્રણ વિકપેને જ સ્વીકાર કરવો જોઈએ. હવે ત્રિપ્રદેશિ સ્કન્ધાની સ્પર્શના વિષે ગૌતમ स्वामी प्रश्न पूछे छ-" तिप्पए सिए णं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुसमाणे पुच्छा" ત્રિપ્રદેશી સ્કન્ધ પરમાણુ પુલની સાથે કેવી રીતે સ્પર્શ કરે છે? શું તે પોતાના એક દેશથી તેના એક દેશને સ્પર્શ કરે છે? ઈત્યાદિ નવા પ્રશ્નો અહી પૂછવા જોઈએ. श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy