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________________ भगवतीसूत्रे प्टयधिकशतोत्तरत्रिसहस्रयोजनानि श्रीणि च दशभागफलशेषाणि ३१६२१ एतत्संख्यकयोजनप्रमाणस्य त्रिगुणितत्वे १४८६१६ इत्यस्य लाभात् । एवं लवणसमुद्रम्पति अष्टषष्टधिकाष्टशतोत्तरचतुर्नवतिसहस्रयोजनानि चत्वारि च योजनस्य दशभागफल शेषाणि ९४८६८५० एतत्सर्वाधिकदीदिवसमाने तापक्षेत्रमानं भवति, किश्चिनाष्टविंशत्यधिकद्विशतोत्तरषोडशसहस्राधिकळक्षत्रय-३१६२२७ मानस्य जम्बूद्वीपपरिधेः (३ लाख १६ हजार २सौ २७ योजन, ३कोस १२८धनुष, १३ अंगुल, कुछ विशेषाधिक आधा अंगुल-परिधि) दशभिर्भागे हृते तद्भागफललब्धिरूपस्य द्वाविंशत्यधिक षट्शतैकत्रिंशत्सइनयोजनानि अष्ट दशभागफलशेषाणि ३१६२२०० एतत्संख्यकयोजनप्रमागस्य त्रिगुणितत्वे ९४८६८५४ इत्येतस्य फलितत्वात् , एवमेव न्यूनान्न्यूनतमद्वाद मेरु की परिधि का प्रमाण ३१६२३ एकतीस हजार छसो तेईस योजन से कुछ कम है। इसमें दश का भाग करने पर ३१६२ तीनहजार एकसो पासठ। इतनी एक भाग का प्रमाण आता है। इस भाग को तिगुना करने पर ९४८६ नवहजार चारसो छयासी ६ आ जाते है। तथा लवणसमुद्र के प्रति अर्थात् लवणसमुद्रको ओर सब से बड़े दिन में ९४८६८ चोरानवे हजार आठसो अडसठ योजन ४ बटे १० जितना क्षेत्र तापक्षेत्र होता है और वह इसप्रकार से होता है ३१६२२८ तीन लाख सोलह हजार दोसो अठाईस योजन से कुछ कम अर्थात् ३ तीन लाख सोलह १६ हजार २ दोसौ २७ योजन ३कोस, १२८एकसोअठाईस धनुष १३अंगुल कुछ विशेषाधिक आधा अंगुल और जंबूछीपकी परिधिका प्रमाण है-इसमें दश १०का भाग देनेपर ३१६२२ एकतीसहजार छसौ बाईस इतनी एक भागकी संख्या आती है इस संख्याकी त्रिगुनी करने पर ९४८६८.५ इतनी तापक्षेत्र के योजन की संख्या आ जाती है। जघन्य १२ मुहूर्तरूप रात्रिक्षेत्र का प्रमाण भी इसी तरह से जानना चाहिये। इसमें विशेषता इतनी ही है कि परिधि के प्रमाण दशहरे का भाग देने पर आगत उस एक भाग को द्विगुणित ही करना चाहिये। જનથી સહેજ ઓછો છે. એકત્રીસ હજાર છસો ત્રેવીસ ૩૧૬૨૩ ને વડે ગુણવાથી ૯૪૮૬ નવ હજાર ચાર છયાસી 1 જન પ્રમાણ ક્ષેત્ર આવી જાય છે. લવણ સમુદ્ર તરફ સૌથી મોટા દિવસે ૯૪૮૬૮ ચોસણુ હજાર આઠસે અડસઠ ન જન પ્રમાણે તાપક્ષેત્ર હોય છે. તે આ પ્રમાણે બને છે-જબૂ હીપના પરિઘનું પ્રમાણ ૩૧૬૨૨૮ ત્રણ લાખ સેળ હજાર બસે અઠયાવીસ એજનથી સહેજ ઓછું એટલે કે ૩૧ ૬૨૨૭ જન ૩ કેસ, ૧૨૮ ધનુષ અને ૧૩ આંગળથી સહેજ વધારે છે. તેને ૪ ભાગ કરવાથી. (એટલે કે તેને શું વડે ગુણવાથી) ૯૪૮૬૮ જનનું તાપક્ષેત્ર થાય છે. ટૂંકમાં મૂકી ૧૨ બાર મુહુર્ત પ્રમાણ વાળી રાત્રિના ક્ષેત્રનું પ્રમાણ પણ એજ પ્રમાણે સમજવું श्री भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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