SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ५ ० १ सू० २ 'रात्रिदिवस स्वरूपनिरूपणम् तिष्ठति, दिवसद्वयमित्यर्थः सर्वाधिकदिवसमानन्तु अष्टादशमुहूर्तात्मकमुक्तम्, अष्टादश च पटेर्दशभागफल रूपपटू त्रितयरूपा भवन्ति अर्थात् पष्टेः दशभिर्भागे हृते यद् भागफलं षट्रूपं तस्य त्रिभिर्गुणितत्वे अष्टादश इति जायते । यदा च अष्टादशमुहूर्त दिनं भवति तदा रात्रिमानं द्वादशमुहूर्तात्मकं भवति, द्वादश च षष्टेर्दशभागफलपड्वयरूपाः भवन्ति, तत्र च मेरुम्पति षडशीत्यधिकचतुः शतोत्तरनवसहस्रयोजनानि नव च दशभागशेषाणि योजनस्य - ९४८६ एतत्सर्वाधिकदीर्घदिवसमाने वक्ष्यमाणदशभागफलत्रयात्मकं तापक्षेत्रमान भवति, किश्चिदविशेषोत्रयोविंशत्यधिकषट्शतो तरके त्रिंशत्सहस्रयोजन (३१६२३) मानस्य मन्दरपरिधेः (गोलाकारस्य ) दशभिर्हते भागे भागफललब्धिरूपस्य द्विषतालीस घंटे में ) सूर्य मंडल को पूरता है-अर्थात् एक मंडल में सूर्य साठ मुहूर्त्त तक दो दिनतक रहता है। बडे से बड़े दिन का प्रमाण अठारह मुहूर्त्त का कहा गया है सो ये अठारह, साठ को दश से भाजित करने पर जो एक भागरूप ६ छह आते हैं उन्हें तीन से गुणा करने रूप हैंअर्थात् साठ के दशभागफलरूप ६छह के तीन भागरूप हैं। जब अठारह मुहूर्त का दिन होता है तब रात्रि का प्रमाण बारह मुहूर्त्त का होता है । सो ये बारह साठ के दश भाग करने से जो एक आता है-उसके दो भागरूप हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि अठारह दश भाजित ६० साठ के एकभाग के तीन भागरूप और बारह दशभाजित साठके एक भाग के दो भागरूप हैं । इसमें मेरु के प्रति आयाम की अपेक्षा सब से अधिक बडेदिन में ९४८६ नवहजार चारसो छयासी योजन जितना तापक्षेत्र होता है यह तापक्षेत्र, मेरु की परिधि का जितना प्रमाण है उसके दशभाग के एकभागके तीन भागरूप है । वह इस प्रकार से ३३ સુધી) રહે છે. એટલે કે બે દિવસમાં સૂર્ય એક મંડળને પસાર કરે છે. મેટામાં મોટા દિવસનું પ્રમાણ ૧૮મુહૂર્તનુ કહ્યું છે. તે અઢાર સાઠને ૧૦દસવડે ભાગી જે ६ लागार आवे तेना उ गाइ छे ( ५८ = १० + २० × 3 ) भेटले + ई = २८ न्यारे १८ भुहूर्त नो द्विवस होय छे, त्यारे १२ भुतनी शरात्रि होय छे. ते १२ मुहूर्त ० ० नी भराभर छे. अथवा १० ના ૧૦માં ભાગના મેં ગણા જેટલું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ૪૮ = ૬૦ ÷ १० + 3 भने १२ = १०÷१० x २ सौथी भोटा हिवसे प्राशयुक्त क्षेत्र મેરુના આયામ ( લંબાઇ )ની અપેક્ષાએ ૯૪૮૬ નવહાર ચારસેા યાસી હું ચેાજન છે. આ તાપક્ષેત્ર ( પ્રકાશયુકત સ્થાન ) મેરુના પરિધના પ્રમાણુ કરતાં ૪ માં ભાગ પ્રમાણ છે. મેરુના પરિઘ ૩૧૬૨૩ એકત્રીસ હજાર છસેા ત્રેવીસ भ ५ श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy