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भगवतीस्त्र भूतः ऊर्ध्वयालारहितायोगोलकवत्संजातः, मुर्मुरभूतः,-तुषाग्निरूपः सम्पन्नः छारिकभूतः भस्मीभूतः संजातः " तोपच्छा अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराएचेव अप्पाऽऽसवतराए चेव अप्पवेयणतराए चेव ?' ततः पश्चात् अङ्गारभूता. द्यवस्थानन्तरम्-अल्पकर्मतराय, अङ्गाराधवस्थामाश्रित्य अल्पकर्मतराय चैव भवति। अल्पक्रिया तराय चैत्र, अल्पास्रवतराय चैत्र, अल्पवेदनतराय चैव भाति किम् ? भगवानाह-हंता, गोयमा ! अगणिकाएणं अहुगुज्जलिए समाणे तं चेव ' तदेव पूर्ववदेव महाकर्मतराय चैव, महाक्रियातराय चैव महास्रवतराय चैत्र महावेदनतराय चैव भवति अथ खलु समये समये व्यपकृष्यमाणो व्यपष्यमाणश्वरमकालसमये अङ्गारभूतः, मुसुरभूतः, छारिकभूतः, ततः पश्चात् अल्पकमतराय चैव, अल्पक्रियातराय चैव, अल्पवेदनतराय चैव भवतीति ।। (चरिम कालसमयंसि) अन्तिम काल में जब इसकी ऐसी दशा हो जाती है यह (इंगालभूए) ऊर्ध्व ज्वाला से रहित होकर अंगार रूप अवस्था में आ जाता है (मुम्मुरब्भूए ) तुषाग्नि जैसा बन जाता है ( छारियन्भूए ) भस्मीभूत राख रूप में परिणत हो जाता है (तओ पच्छा ) राख रूप में परिणत होने पर यह (अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अ. प्पासवतराए चेव, अप्पवेयणतराए चेव भवइ ) भस्म-राख अवस्था की अपेक्षा लेकर कर्माभाव के लिये क्रियाभाव के लिये, आस्रवाभाव के लिये तथा वेदनाभाव के लिये, होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-( हंता गोयमा!) हां गौतम ! ( अगणिकाए णं अहुणुज्जलिए समाणे तं चेव ) इसी समय प्रदीप्त होता हआ अग्निकाय महाकमेतर के लिये, महाक्रियतर के लिये, महा आस्रवतर के लिये तथा महोवेदनतर के लिये होता है तथा धीरे २ जब वही अग्निकाय अपनी तेजी से रहित होने लगता कालसमयंसि ) छेटे (इंगालब्भूए) susil witथी २डित मनीन मार ३५ मनीय छ, (मुम्मुरब्भूर) तुषानि मनी लय छे. (९५२ २१५ વળી જાય પણ અંદર પ્રજવલિત હોય એવી સ્થિતિમાં આવી જાય છે)
नारियभर ) सने पट २।०३५ मनी नय छ, ( तओ पच्छा अप्पकम्म. तराएचेव, अपकिरियतगए चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणतराए चेव भवह) ત્યારે તે શું કમભાવ, નિયાભાવ, આસ્રવાભાવ અને વેદનાભાવને માટે હોય છે ?
गौतम स्वामीना प्रश्न उत्तर मापता मडावी२ प्रभु ४३ छ (हता गोयमा ! अगणिकाए ण अहुणुज्जलिए समाणे त चेव) , ! actnaलित થયેલ અનિ મહા ક્રિયાતર, મહા આસવતર અને મહા વેદનતર હોય છે.
श्री भगवती सत्र:४