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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ६ सू०१ कर्मविषये निरूपणम् वन्ति बध्नंति । गौतमः पुनः पृच्छति- कहणं भंते ! जीवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरेंति ? ' हे भदन्त ! कथं केन कारणेन खलु जीवाः दीर्घायुष्कतायै कर्म प्रकु. र्वन्ति, ? वध्नन्ति, भगवानाह-' गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं " हे गौतम ! त्रिभिः स्थानः जीवा दीर्घायुष्कतायै कर्म बध्नन्ति, तान्येव स्थानानि प्रदर्शयति-तंजहा -णो पाणे अइवाइत्ता णो मुसं वइत्ता' तद्यथा-नो प्राणान् अतिपात्य-जीवहिंसा मकृत्वा इत्यर्थः, नो मृषा उक्त्वा नापि असत्यभाषणं कृत्वा 'तहाख्वं समणं वा, माहणं वा, फासुएसणिज्जेणं, असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता' तथारूपं तथाविधं श्रमणं वा, ब्राह्मणं वा, प्रासुकैषणीयेन अशन-पान-खादिमस्वादिमेन पतिलाभ्य, ' एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ' एवम् भी अर्थ हो सकता है कि इस प्रकार के कामों को करने वाला जीव जिस गति का बंध कर लेता है वहां की जितनी भी उत्कृष्ट आय होती है उतनी आयु का यह बंध कर्त्ता नहीं होता है-अल्पायु का ही यह बंधक बनता है। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि (कह णं भंते ! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति) हे भदन्त ! जीव किन २ कारणों से दीर्घ आयु का बंध करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (तिहिं ठाणेहिं ) जीव तीन स्थानों के आचरण करने रूप कारणों से दीर्घायुष्य का बंध करते हैं । (तं जहा वे तीनस्थान इस प्रकार से हैं-(णो पाणे अइवाइत्ता, णो मुसं वहत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता-एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ) जीवों की આ કથનને એ પણ અર્થ થાય છે કે આવા પ્રકારના કામો કરનારા છે. જે ગતિને બંધ કરે છે ત્યાંની જેટલી ઉત્કૃષ્ટ આયુ હોય છે તેટલા આયુને બંધ કરનાર થતો નથી, તે અલ્પાયુને જ બંધ કરે છે. वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने भाले प्रश्न पूछे छे , ( कहणं भंते ! जीवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरेंति ?) लहन्त ! उया ४या रणाने सीधे । દીઘાયુષ્યને બંધ કરે છે ? तन 6त्तर मापता महावार प्रभु ४ छ-( गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं ) હે ગૌતમ! ત્રણ કારણનું આચરણ કરીને, જે દીર્ધાયુષ્યને બંધ કરે છે. (तजहा) १ ॥२२॥ मा प्रमाछ-( नो पाणे अइवांइत्ता, नो मुसे वइत्ता, तहारूव समणं वा, माहणं वा, फासुएसणिज्जेणं असण, पाण, खाइम साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जिवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरेंति ) ७वानी सानी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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