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भगवतीसूत्रे टीका-स्वतीर्थिकवक्तव्यतानन्तरम् अन्यतीथिकवक्तव्यता नाह-" अण्ण इत्थियाणं भंते !" इत्यादि। 'अण्णउत्थियाणं भंते ! एवं आइ क्खंति, जावपरूनि' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! अन्ययूथिकाः अन्यतीर्थिकाः खलु एवम्वक्ष्यमाणप्रकारेण आख्यान्ति-कथयन्ति, यावत्-प्ररूपयन्ति, निरूपयन्ति, यावत्करणात् 'भाषन्ते, प्रज्ञापयन्ति ' इति संग्राहयम् । तदेवाह-'सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता एवंभूयं वेरणं वेदेति से कहमेयं भंते ! एवं ?' मंडलं नेयव्वं ) इस तरह से संसारी जीवों के विषय में ऐसा कथन किया गया है ऐसा जानना चाहिये।
टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा स्वतीर्थिक वक्तव्यता के अनन्तर अन्यतीर्थिक वक्तव्यता का निरूपण किया है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि (अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति जाव परू वेति ) हे भदन्त ! अन्यतीर्थिक जन जो ऐसा कहतें हैं यावत् प्ररूपित करते हैं-यहां (यावत् ) शब्द से “भाषन्ते, प्रज्ञापयन्ति " इन क्रिया: पदों का संग्रह किया गया है-वे क्या कहते हैं-इसी बात को सूत्रकार ने (सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ) इस पाठ द्वारा प्रकट किया है। " समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव, और समस्त सत्त्व एवंभून वेदना को ही भोगते हैं " सो (से कहमेयं भंते ! एवं ) हे भदन्त ! यह उनकी मान्यता क्या इसी प्रकार से ठीक है? एवंभूत वेदना का तात्पर्य यह है कि जैसा कर्म जीवादि द्वारा किया माम समावु... संसारमंडल नेयव्व से सारी वन विषयमा मा પ્રકારનું કથન કરાયું છે તેમ સમજવું.
ટીકાર્થ-કર્મબંધના વેદનના વિષયમાં અન્ય મતવાદીઓની જે માન્યતા છે તેનું ખંડન કરીને સિદ્ધાંતની માન્યતાનું આ સૂત્રમાં પ્રતિપાદન કરવામાં मायुं छ
गौतम अधरना प्रश्न-“ अण्ण उत्थिया ण भंते ! एवं आइक्खंति जाव परूवेंति" 3 महन्त ! अन्य भताही मे ४ छे, मे विशेष ध्यान ४२ छ, मेवी प्रज्ञापना ४२ छ भने मेवी प्र३५! ४२ छ “ सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता" " समस्त प्राण, समस्त भूत समस्त છે અને સમસ્ત સ એવંભૂત વેદના જ (કર્મબંધ અનુસારની વેદના सागवछ. " " से कहमेय भंते ! एवं'' ते महन्त तमनी त मान्य शुभराभर छ ?
श्री. भगवती सूत्र:४