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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०५ सू०१ छमस्थसिद्धयभावनिरूपणम् ३३३ टीका- चतुर्थोद्देशकान्ते चतुर्दशपूर्विणः श्रुतकेवलिनो महानुभावत्वं प्रति पादितम्, स च श्रुत केवलो महानुभावत्वादपि छद्मस्थश्चेत्तदा न कथमपि सिद्धि महतीति प्रतिपादयितुमाह-' छउमत्थेणं भंते ! ' इत्यादि । 'छउमत्थेणं भंते ! मासे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं० ? ' त्ति, गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! छद्मस्थः खलु मनुष्यः अतीतं व्यतीतम् , शाश्वतं-नित्यम् , समयंकालं व्याप्येत्यर्थः कालावनोरत्यन्तसंयोगे द्वितीया, व्यतीतानन्तशाश्वतसमये इति यावत् केवलेन संयमेन संयममात्रणेत्यर्थः सिद्धोभवतीति प्रश्नः । प्रकार से यहां पर भी आलापक जानना चाहिये, यावत् ' अलमस्तु' ऐसा यहां कहा गया हो वहां तक। ___टीकार्थ-चतुर्थ उद्देशक के अन्त में चतुर्दशपूर्वो-श्रुत केवली में महानुभावता का प्रतिपादन किया गया गया है सो ऐसा वह श्रुतकेवली महानुभाववाला होने पर भी यदि छमस्थ है तो वह किसी भी तरह से सिद्धिपद को प्राप्त नहीं कर सकता है इसी बात को प्रतिपादन करने के लिये सूत्रकार ने यह सूत्र कहा कहा है-इसमें गौतम प्रभु से पूछते हैं (छउमत्थे गं भंते ! मणूसे) हे भदन्त ! छमस्थ मनुष्य (तीयमणतं सासयं समयं) अतीत अनन्त शाश्वत समय में-निकल गये ऐसे अन्तरहित नित्य समय में (केवले णं संजमेण) केवल संयम सेसंयममात्र से-सिद्ध हुआ है क्या? इसका उत्तर देते हुए भगवान् गौतम से कहते हैं-(जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयव्वा વિષયનું પહેલા શતકના ચોથા ઉદ્દેશકમાં જે આલાપકો (પ્રશ્નોત્તરો) દ્વારા प्रतिपाइन ४२रायुछे, ते मला५ो २मडी ५९] ४२११. “अलमस्तु" પર્યતનું સમસ્ત કથન આ વિષય સંબંધમાં ગ્રહણ કરવું જોઈએ. ટીકાઈચોથા ઉદ્દેશકના અંતિમ સૂત્રમાં ચૌદ પૂર્વધારી-ગ્રુતકેવલીની મહાનુભાવતાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. એવા તે શ્રતકેવલી પણ જે છવસ્થ જ હોય તે તેઓ કોઈપણ પ્રકારે સિદ્ધપદ પ્રાપ્ત કરી શકતા નથી. એ જ વાતનું સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા પ્રતિપાદન કરે છે. ગૌતમ સ્વામી મહાवीर प्रसने वो प्रश्न पूछे छ, “उमत्थे ण भंते! मणूसे' महन्त ! ७५२५ मनुष्य “ तीयमणंतं सासयं समय ' मानत, शाश्वत समयमा वीतमा, (व्यतीत गये। मत२हित नित्य समयमा) “केवळ ण संजमेण" ફક્ત સંયમથી જ સિદ્ધપદ પામ્યા છે ખરા ? श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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