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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०४ सू०१६ चपुर्दशपूर्वधरशक्तिनिरूपम् ३२७ कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं, छत्ताओ छत्तसहस्सं, दंडाओ दंडसहस्स अभिनिबटेत्ता उवदंसेत्तए ? 'गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! चतुर्दशपूर्वी चतुर्दश पूर्वधारी श्रुतकेवली इत्यर्थः घटाव-एकं घट सहायतया अवधि कृत्वा आश्रित्य इत्यर्थः घटसहस्रम् सहस्रघटानित्यर्थः अभिनिर्वत्य निष्पाध श्रुतज्ञानोत्पत्रिलब्धिविशेषेण उपदर्शयितुं प्रभुः समर्थः किम् ! इति अभिसम्बन्धः, एवं पटात् पटसहस्त्रम्, कटा='चटाई' इति भापसिद्वद्रव्यात् कटसहस्रम् , रथात् रथसहस्रम् , छत्रात् छत्रसहस्रम् , दण्डात्-दण्डसहस्रम् , अभिनिवर्त्य अभिनिष्पाद्य श्रुतसमुत्थलब्धि विशेषेण उपदर्शयितुं समर्थः किम् ? इतिपूर्ववदन्वय सम्बन्धः ।
भगवानाह-'हंता, पभू' हे गौतम ! हन्त, सत्यम्-श्रुतकेवली एकघटादिक माश्रित्य सहस्रघटादिकं निष्पादयितुं प्रभुः समर्थः इत्यर्थः, । गौतमस्त्र हेतु वन में से हजारों वस्त्रों को, (कडाओ कडसइस्सं ) एक चटाई में से हजारों चटाईयों को, (रहा रहसहस्स) एक रथमें से हजारों रथों को (छत्ताओ छत्तसहस्सं) एक छत्र में से हजारों छात्रों को, (दंडाओ दडसहस्स) एक दण्ड में से हजार दण्डों को (अभिनिव्वहेत्ता) निष्पक्ष कर (उवदंसेत्तए) दिखला सके ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं (हंता पभू) हे गौतम ! ऐसा कर सकने के लिये वह समर्थ है-अर्थात्-एक घड़े में से वह हजारों घड़ों को निष्पन्न कर दिखला सकता है । तात्पर्य कहने का यह है कि श्रुतकेवली को श्रुतज्ञान के प्रभाव से ऐसी लब्धि प्राप्त हो जाती है, जो वह एक घट की सहायता से ही-उसके सहारे से ही-हजारों घटों को निष्पन्न कर दिखला सकता है ! अष गौतम स्वामी ऐसा कर सकने में क्या कारण है इस बात को जानने की अभिलाषा से प्रभु से पूछते हैं-( से केणट्टेणं पभू चउद्दसपुव्वी जाव उवदंसे या भाथी ! यी ( रहाओ रहसहस्सं ) मे २थमाथी ॥२॥ २थ, (छत्ताओ छत्तसहस्स) मे छत्रमाथी उतरे। छत्र, (दंडोओ दंडसहस्स) भने स मांथी ७०३।६नु (अभिनिव्वहेत्ता) निर्माण प्रशन ( उवदसेता) શું બતાવી શકવાને તેઓ સમર્થ છે ખરાં? "
उत्तर-(हता पभू) गीतम ! तेस तम ४२ शान समर्थ . તેઓ એક ઘડામાંથી હજારે ઘડાનું નિર્માણ કરી શકે છે. શ્રુતકેવળીને શ્રતજ્ઞાનના પ્રભાવથી એવી લબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે કે તેઓ એક ઘડાની મદદથી હજાર ઘડાઓનું નિર્માણ કરી બતાવવાને સમર્થ હોય છે
હવે તેનું કારણ જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે में (से केणढेण पभू चउद्दसपुवी जाव उबदंसेत्तए १) 3 महन्त ! यौपूर्व
श्री. भगवती सूत्र:४