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भगवती सूत्रे
भिद्यमानानि लब्धानि प्राप्तानि, अभिसमन्वागतानि भवन्ति तत् तेनार्थेन यावत् - उपदर्शयितुम् । तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त । इति ॥ मु०१६ ।।
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टीका - केवलिनः प्रस्तावात् तद्विशेषश्रुतके व लिवक्तव्यतामाह - पभूणं भंते!' इत्यादि । 'पभ्रूणं भंते चउद्दसन्त्री घडाओ घडसहस्सं, पडाओ पडसहस्सं, गयाइं भवंति, से तेणद्वेणं जाव उवसेत्तए) हे गौतम! चतुर्दश पूर्वधारी एक प्रकार की लब्धिद्वारा उत्करिका आदि भेदोंवाले अनन्त द्रव्यों को लब्धकर लेते है, प्राप्त कर लेता है और अभिसमन्वागत कर लेता है । इस कारण मैंने ऐसा कहा है कि चतुर्दश पूर्वधारी यावत् दिखाने के लिये समर्थ है । (सेवं भंते! सेवं भंते त्ति) हे गौतम ! जैसा आपने यह कहा है वह सर्वथा सत्य है । हे भदन्त ! वह सर्वथा सत्य है - ऐसा कह कर गौतम स्वामी अपने स्थान पर यावत् विराजमान हो गये ।
टीकार्थ - यहां पर केवली का प्रकरण चालू है-अतः केवली के विशेषरूप श्रुत केवली के विषय में सूत्रकार इस सूत्र द्वारा वक्तव्यता का कथन कर रहे हैं । इसमें गौतम गणधर प्रभु से पूछ रहे हैं कि( पभू णं भंते! चउद्दसपुच्ची) हे भदन्त ! चौदह पूर्व का पाठी श्रुतकेवली क्या इस प्रकार से करने में समर्थ हो सकता है, जो वह ( घडाओ घडसहस्सं ) एक घट में से हजारघड़ा कों (पडाओ पडसहस्सं ) एक
माणाई' लद्धाइ' पत्ताइ अभिसमण्णा गयाइ भवंति से तेण्ट्टेण जाव उवद से त्तए) હે ગૌતમ ! ચૌદ પૂર્વધારી એક પ્રકારની લબ્ધિ દ્વારા ઉત્કરિકા આદિ ભેદવાળાં અનંત દ્રશ્યેાને લબ્ધ કરી લે છે, પ્રાપ્ત કરી લે છે, વિશેષ રૂપે મેળવી લે છે. તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે ચૌદ પૂર્વ ધારી એક ઘડામાંથી હજાર ઘડાનું, એક વસ્ત્રમાંથી હજાર વસ્ત્રનું ઇત્યાદિ પૂર્વોક્ત સમસ્ત વસ્તુઓનું નિર્માણુ कुरी मताववाने समर्थ होय छे. ( सेत्र भंते ! सेव ं भंते! त्ति) हे लहन्त ! આપે જે કહ્યું તે સથા સત્ય છે. તેમાં શંકાને સ્થાન જ નથી, એમ કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને એસી ગયા.
ટીકા”—કેવલીનું પ્રકરણ ચાલી રહ્યું છે. તેથી આ સૂત્રમાં સૂત્રકાર શ્રુત કેવલીનું નિરૂપણ કરે છે
भौतम गणधर महावीर अमुने थोवे। प्रश्न उरे छेडे ( पभूणं भंते ! उस पुत्री ) हे महन्त ! यो पूर्वधारी श्रुतवली शुभ असा उरी अताववाने समर्थ डे!य छे ? - ( घडाओ घडसहस्स' ) मे घडाभांथी हुन्न। uslæl, (gerat qzage' ) As quuial dmêı qw, (CE13) FEAGEN® )
श्री भगवती सूत्र : ४