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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० ४ सू० १६ चतुर्दशपूर्वधरशक्तिनिरूपणम् ३२५ ताई दवाई उकरिया भेएणं भिजमाणाई, लद्धाइं, पत्ताई अभिसमण्णा गयाइं भवंति, से तेणटेणंजाव-उवदंसेत्तए, सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति” । सू० १६ ॥ पंचमसए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ ५-४ ॥ छाया-प्रभुः खलु भदन्त ! चतुर्वेशपूर्वी घटात् घटसहस्रम् , पटात् पटसहस्रम् , कटात कटसहस्रम् , रथात् रयसहस्रम् , छत्रात् छत्रसहस्रम् दण्डात् दण्डसहस्रम् अभिनित्य उपदर्शयितुम् ? । हन्त, प्रभुः, । तत् केनार्थेन प्रभुः चतुर्दशपूर्वी यावत् -उपदर्शयितुम् ? । गौतम ! चतुर्दशपूर्विणः अनन्तानि द्रव्याणि उत्करिकाभेदेन 'पभू णं भंते !' इत्यादि सूत्रार्थ-(पभू णं भंते ! चोहसपुब्वी घडाओ घडसहस्स पडाओ पडसहस्सं, कडाओ कडसहस्सं, रहाओ रहसहस्सं छत्ताओ छत्तसहस्सं दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वदे॒त्ता उवदंसेत्तए) हे भदन्त ! चौदह पूर्वधारी मनुष्य-श्रुतकेवली-एक घड़े में से हजारों घड़ों को, एक वस्त्रसे हजारों वस्त्रों को एक कट-चटाई-से हजारों चटाईयों को, एक रथ से हजारों रथों को, एक छत्रसे हजारों छत्रों को, और एक दण्ड से हजारों दण्डों को बनाकर के क्या दिखा सकता है ? (हंता पभू) हां गौतम! दिखा सकता है। (से केणटेणं पभू चउद्दसपुब्बी जाव उवदंसेत्तए ?) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि चौदह पूर्वधारीश्रुत केवली-यावत् दिखा सकता है ? (गोयमा ! चउद्दसपुन्विस्स णं अणंताई दवाइं उक्करियाभेएणं भिज्जमाणाईलद्धाइं पत्ताइं अभिसमण्णा (पभूण' भंते ! ) त्या सूत्राय-(पभूण भंते ! चोहसपुष्वी घडाओ घडसहस्स, पडाओ पडसहस्स, कडाओ कडसहस्स, रहाओ रहसहरसं, छत्ताओ छत्तसहस्सं दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्वदे॒त्ता उवद सेत्तए १) 3 महन्त! यौह पूर्वधारी भनुष्य-श्रुतवाणी- 4. માંથી હજાર ઘડાનું એક હજાર વસ્ત્રમાંથી હજાર વસ્ત્રનું એક ચટાઈમાંથી હજાર ચટાઇન, એક રથમાંથી હજાર રથનું, એક છત્રમાંથી હજાર છત્રનું અને એક દંડમાંથી હજાર દંડનું નિર્માણ કરી બતાવવાને શું સમર્થ હોય છે ? (हता पभू), गौतम! त तेम ४२वाने समजाय छे. ( से केणदेण'पभ चउद्दसपुव्वी जाव उवदसेत्तए?). लहन्त! मा५ ॥ ॥२को मे डा છે કે ચૌદ પૂર્વ ધારી-ગ્રુતકેવલી–એ પ્રમાણે કરી બતાવવાને સમર્થ હોય છે? (गोयमा! चउद्दसविस्स अणंताई व्वाई उक्करियाभेएणं भिज्ज श्रीभगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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