________________
प्रमेय वन्द्रिका टी० श० ५ उ० ४ सू० १ प्रमाणस्वरूपनिरूपणम्
ग्रहीतव्यं नतु आगमरूपम्, तस्य खलु आगमस्य वक्ष्यमाणप्रमाणान्तर्गतत्वेनैव ग्रहीष्यमाणतया माणसा' श्रुत्वा' इति शब्देन ग्रहणे असंगतत्वापत्तेः ॥ सू० ८ ॥ मूलम् - " से किं तं पमाणे ? पमाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहापञ्चखे १. अणुमाणे २, ओवम्मे ३, आगमे ४, जहा अणुओगदारे तहा णेपव्वं पमाणं जाव तेण परं नो अत्तागमे, णो अनंतरागमे परंपरागमे " ॥ सू० ९ ॥
२७९
छाया - अथ किं तत् प्रमाणम् ? प्रमाणं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा प्रत्यक्षम् ?, अनुमानम् २, उपमानम् ३, आगमः ४, यथा अनुयोगद्वारे तथा ज्ञातव्यं प्रमाणम्, यावत्-तेन परं नो आत्मागमः, नो अनन्तरागमः, परम्परागमः ।। सू०९ ॥
66
यहां पर श्रुत्वा " इस पद से ज्ञान का निमित्त होने के के कारण केवल केवली भगवान का सामान्यवचन ही ग्रहण करना चाहिये आगम प्रमाणरूप उनका वचन ग्रहण नहीं करना चाहिये। क्यों कि आगे प्रमाण का वर्णन किया जावेगा सो आगम का भी उसी में वर्णन कहा जावेगा अतः 4 श्रुत्वा ' पद से यहां आगमरूप वचन के ग्रहण मानने में असंगतता की आपत्ति आवेगी || सूत्र ८ ॥
'से किं तं पमाणे !' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - ( से किं तं पमाणे ) हे भदन्त । प्रमाण पत्र का क्या अर्थ है ? (पमाणे चव्विहे पण्णत्ते ) हे गौतम! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है। (तंजा ) उसके वे चार प्रकार ये हैं- (पच्चक्खे, अणु
उपरना सूत्रमां " सोच्चा ( श्रुवा ) " पहथी वसी लगवाननां सामान्य વચનને જ ગ્રહણ કરવું–આગમ પ્રમાણુરૂપ તેમનું વચન ગ્રહણ કરવું જોઇએ નહીં. કારણ કે હવે પછીના પ્રકરણમાં પ્રમાણુનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવશે, આગમનું વર્ણન પણ તેમાં કરાશે. ‘શ્રુત્વા’ ( સાંભળીને ) પદ્મ દ્વારા આગમ રૂપ વચનને ગ્રહણ કરવાથી અસંગતતા ઊભી થવાનો સ`ભય રહેશે. તેથી આટલી સૂચના ધ્યાનમાં લેવી. ! સૂ. ૮ ॥
" से कि त पमाणे " इत्यादि
सूत्रार्थ - ( से कि त पमाणे ? ) हे अहन्त 'प्रभा' पहनो शो अर्थ थाय छे ? ( पमाणे चउव्विद्दे पण्णचे " हे गौतम! प्रभाणुना यार अमर छे. ( तं जहा ) ते यार प्रहारो नीचे प्रमाणे छे - ( पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे,
श्री भगवती सूत्र : ४