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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० ४ सू० ७ केवलोछमस्थनिरूपणम् २१
केवलि-छमस्थविशेषवक्तव्यता। मूलम् केवली गं भंते ! अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ? हंता, गोयमा! जाणइ पासइ, जहा णं भंते — केवली अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ, तहा णं छउमत्थेऽवि अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ? गोयमा ! णो इणढे समडे, सोचा जाणइ पासइ, पमाणतो वा ।से किंतं सोचाणं? केवलिस्स वा, केवलि सावयस्स वा, केवलि सावियाए वा, केवलि उवासगस्स वा केवलि उवासियाए वा तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खिय उवासगस्स वा, तपक्खियउवासियाए वा से तं सोच्चा ॥ सू० ८॥
छाया-केवली खलु भदन्त ! अन्तकरं वा, अन्तिमशरीरकं वा, जानाति, पश्यति ? इन्त, गौतम ! जानाति, पश्यति । यथा खलु भदन्त ! केवली अन्तकरं
केवलि-छमस्थ विशेष वक्तव्यता 'केवली णं भंते !' इत्यादि।
सूत्रार्थ--( केवली भंते ! अंतकरं अंतिम सरीरियं वा जाणइ पासइ) हे भदन्त ! केवली भगवान् अन्तकर को अथवा अन्तिम शरीर वाले को जानते और देखते हैं क्या ? ( हंता गोयमा ! जाणइ पासइ) हां गौतम ! केवली भगवान् अन्तकर को एवं अन्तिम शरीरधारी को
पली मन छAस्थनी विशेष पतव्यता-- " केवली जे भंते ! " त्याहि. (केवलीणं भते! अंतकर अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ?)
હે ભદન્ત! કેવલી ભગવાન અતકરને અથવા અન્તિમ શરીરવાળા (यम शरी1) ने शुत छ भने छ भ२१ ! (हंता गोयमा ! जाणइ पासइ) गौतम ! सी लगवान सरमशरीरी अपने જાણે છે અને દેખે છે.
श्री. भगवती सूत्र:४