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भगवतीसूत्रे वा, अन्तिमशरीरकं वा जानाति पश्यति, तथा छद्मस्थोऽपि अन्तकरं वा, अन्तिम शरीरकं वा जानाति, पश्यति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, श्रुत्वा जानाति, पश्यति, प्रमाणतो दा। अथ किं तत् श्रुत्वा ? श्रुत्वा केवलिनो वा, केवलिश्राव कस्य वा, केवलिश्राविकायाः वा, केवल्युपासकस्य बा, केवल्युपासिकायाः वा, तत्पाक्षिकस्य वा, तत्पाक्षिकश्रावकस्य वा, तत्पाक्षिकश्राविकायाः बा, तत्पाक्षिकोपासकस्य वा, तत्पाक्षिकोपासिकायाः वा, तदेतत् श्रुत्वा ।। सू. ८ ॥ जानते हैं और देखते हैं । ( जहा णं भंते ! केवली अंतकरं वा अंतिम मरीरियंवा जाणइ, पासह तहाणं छउमत्थे वि अंतकरं वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ) हे भदन्त ! जिस प्रकार से केवली भगवान् अन्तकर को एवं अन्तिम शरीर वाले को जानते और देखते हैं तो क्या इसी तरह से छमस्यज्ञानी मनुष्य भी अन्तकर और अन्तिम शरीर वाले को जानता और देखता है क्या ? (गोयमा ! णो इण हे समढे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (मोच्चा जाणइ पासह पमाणतोवा) पर हां, छमस्थ मनुष्य सुन करके अथवा प्रमाण से अन्त करको एवं अन्तिम शरीर वाले को जानता है और देखता है । (से किं तं सोच्चा) हे भदन्त ! सुनकरके छद्मस्थ अन्तकर को एवं अन्तिम शरीर वाले को जानता है-इसकाअभिप्राय क्या है ? 'सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलि सावयस्स वा केवली सावियाए वा, केवली उवागस्स वा, केवलि उवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगम्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खिय उवासगरस वा, तप्पक्खिय उवासियाएवा से तं
( जहाणं भंते ! केवली अतकरं वा तिमरीरियं वा जाणइ एसइ, तहाण छ उमत्थे वि अंतकर वा आंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ ?)
હે ભદન્ત ! જેવી રીતે કેવલી ભગવાન અખ્તર અથવા ચરમશરીરધારીને જાણ–દેખી શકે છે. એવી જ રીતે શું છદ્મસ્થજ્ઞાની મનુષ્ય અંતકર અથવા અંતિમ શરીરધારીને જાણી-દેખી શકે છે? ( गोयमा ! णो इणठे समठे ) गौतम ! मे सभी शतु नथी (सोच्चा जाणइ पासइ पमाणतो वा) ५ त सानजीन अथवा प्रभाग द्वारा मत४२ मथवा मतिमशरीरवाजाने त श छे मन मी श छ- (से किं मोच्चा?) महन्त ! सामजी छमस्थ मत४२. मतिमशरीरधारीन જાણી શકે છે. આ કથનને ભાવાર્થ શું છે?
(सोच्चा णं केवलिस वा, केवलिसावयस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलि उवासगस्स वा, केवलि उमासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तपक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवागसगस्स वा, तप्पक्खि उवासियाए
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪