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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ ० ४ सू० ५ शिष्यवयस्वरूपनिरूपणम् २५५ 'तएणं तस्स भगवो गोयमस्स माणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्यिए जाव-समुपज्जित्था' ततः खल तस्य भगवतो गौतमस्य इन्द्रभूतेः ध्यानान्तरिकायां ध्यानस्य अन्तरं विच्छेदस्तस्य कारणम् अन्तरिका, ध्यानस्यान्तरिका ध्यानान्तरिका आरध-प्रथमध्यानसमाप्तिः तस्यां वर्तमानस्य प्रथमध्यानसमाप्स्यवस्थायां स्थितस्य अयम् अधुनैव वक्ष्यमाणः एतद्रूपः वक्ष्यमाणस्वरूपः आध्यात्मिकः आत्मनि समवेतः यावत्-चिन्तितः, कल्पितः, मार्थितः मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत-समुत्पन्नः, । संकल्पस्वरूपमाह -"एवं खलु दो देवा महिडिया, जाव-महाणुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउभूया" एवं खलु उपर्युक्तरीत्या द्वौ देवौ महर्षिकौ तिसमृद्धिसम्पन्नौ यावत्महाधुतिको महाबली महायशस्कौ महानुभावौ महाप्रभावशानिनौ श्रमणस्य भगबतो महावीरस्य अन्तिके समीपे प्रादुर्भूतौ, प्रकटितवन्तौ, ' तं नो खलु अहं ते तएणं तस्स भगवओ गोयमस्स झाणंतरियाए वहमाणस्स इमेयाहवे अज्झस्थिए जाव समुपज्जित्था' जब वे भगवान गौतम अपने प्रथम ध्यान कि समाप्तिकर चुके तब उनके मनमें इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ। ध्यानान्तरिका-ध्यान का अन्तर विच्छेद करना इसका नाम ध्यानान्तरिका है-अर्थात्-प्रारब्ध प्रथम ध्यान की समासिका होना इसका नाम ध्यानान्तरिका है। यहां यावत्पदसे संकल्पके 'चिन्तित, कल्पित, प्रार्थित, मनोगत" इन विशेषणों को ग्रहण किया गया है । क्या संकल्प गौतम को उत्पन्न हुआ सो ही अब प्रकट किया जाता है-' एवं खलु दो देवा महिड्डिया जाव महाणुभागा समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउन्भूया' गौतम ने विचार किया कि ये दो महाऋद्धि संपन्न यावत् महाप्रभावशाली देव भगवान महावीर (तएणं तस्स भगवआ गोग्रमस्स झाणतरियाए वट्टमाणस्स ईमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था ) न्यारे लगवान गौतमे तेमनुं ध्यान ५३ यु. त्यारे तमना भनम मा प्रश्न माध्यामिविया२ मा०यो. ( ध्यानान्तरिका) એટલે ધ્યાનને વિચ્છેદ કરવું તે કિયા. એટલે કે શરૂ કરેલા પ્રારંભિક ધ્યાનની समाति थवी तनुं नाम नान्तरि' छे. मडी' 'जाव' (44-1) पथा અંકલ્પ (વિચાર) પદનાં નીચેનાં વિશેષણને સમાવેશ કરાયે છે-“ચિત્િત, पित, प्रथितमनोगत." ગૌતમ સ્વામીના મનમાં શે વિચાર થયે તે પ્રકટ કરતા સૂત્રકાર કહે छ-( एवं खलु दो देवा महइढिया जीव माणुभागा समणस्य भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउन्भूया) FAIR मा ऋद्धि, मडापति, महातेश, महायश, मामल श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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