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________________ २५६ भगवतीसूत्रे देवे जाणामि, तद् नो खलु अहं तौ देवौ जानामि, यत्-" कयरामो, कप्पाओ चा सग्गाओ वा, विमाणाओ वा," कतरस्मात् कल्पाद् देवलोकान् वा, स्वर्गाद् देवलोकैकदेशाद् वा. विमानाद् देवलोकैकदेशैकदेशाद् वा “कस्स वा अत्थस्स अहाय इहं हवं आगया" कस्य वा अर्थस्य प्रयोजनस्य अर्थाय किमर्थमित्यर्थः अत्र अस्मिन् स्थाने, हव्यम् शीघ्रम् आगतो, ' तं गच्छामिणं भगवं महावीरं वदामि, नमंसामि, जाव-पज्जुवासामि' तत् तस्मात्कारणात् गच्छामि खलु भगवन्तं महावीरं वन्दे नमस्यामि यावत्-पर्युपासे, ' इमाई च णं एयारूवाई वागरणा पुच्छिस्सामि त्तिकट्ठ एवं संपेहेइ ' इमानि च एतद्रूपाणि उपर्युक्तस्वरूपाणि व्याकरणानि स्पष्टीकरण वाक्यानि प्रक्ष्यामि इति कृत्वा एवं मनसि अवधार्य, एवम् उक्तरीत्या के समीप प्रकट हुए हैं-' नो खल्लु अहं ते देवे जाणामि' सो मैं इन देवों को नहीं जानता हूं-'महड्डिया जाव महाणुभोगा' में जो यह यावत् पद आया है उससे महाद्युतिको महाबलौ, महायशस्कौ " इन पदोंका संग्रह हुआ है । ' कयराओ वा, कपाओ वा, सग्गाओ वा, विमाणाओ वा कस्स वा अस्थस्स अट्ठाए इहहव्वं आगया' ये दोनों देव किस कलासे, किस देवलोक के एकदेश से, अथवा देवलोकके एकदेश के किस एकदेश से किस प्रयोजन के निमित्त अर्थात्-किसलिये इस स्थान पर जल्दी से आये हुए हैं ? ' तं गच्छामि णं भगवं महावीरं वंदामि नमसामि जाव पज्जुवासामि' अतः में अब श्रमण भगवान् महावीर के पास जाऊँ और उन्हें वंदन नमस्कार करूँ-यावत् उनकी पर्युपासना करूँ और ' इमाइं च णं एयाख्वाइं वागरणाई पुच्छिस्सामि' उनसे फिर इस प्रकार के इन प्रश्नों को पूर्वी ऐसा मन में ख्याल कर उन्होंने ऐसा सोचा 'संपेहित्ता' सोचकरके फिर वे 'उठाए उडे' અને મહાપ્રભાવ સંપન્ન દેવ શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પાસે પ્રકટ થયા છે. (तनो खलु अहं ते देवे जाणामि) हु भने ममता नथी. " कयराओ कप्पाओ वा, सग्गाओ वा, विमणाओ वा कस्स वा अत्थस्स अठाए इहं हवं आगया " तेया या वसमाथी या पताना या विभागमाथी, या विमानमाथी, मने ॥ २णे सत्यारे २मडी मावेसा छ ? " तं गच्छामि गं भगवं महावीर वंदामि नमसामि जाव पज्जुवासामि " तो भगवान महावीरनी પાસે જઉં અને તેમને વંદણ નમસ્કાર કરૂં, અને તેમની સેવાભક્તિ કરીને, मन " इमाइं च णं एयारूबाई वागरणाई पुच्छित्सामि" मन मा माना ( भा२मनमा Enal) प्रश्नो पूछीस. “सपेहिता” मनमा मारने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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