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________________ % 3D3D २४४ भगवतीसूत्रे तद् नो खलु अहं तौ देवौ जानामि, कतरस्मात् कल्पाद्वा, स्वर्गाद्वा, विमानाद्वा, कस्य वा अर्थस्य अर्थाय अत्र हव्यम् आगतो, तद् गच्छामि, भगवन्तं महावीरं वन्दे, नमस्पामि, यावत्-पर्युपासे, इमानिच एतद्रूपाणि व्याकरणानि पक्ष्यामि,-इतिकृत्वा एवं संप्रेक्षते संप्रेक्ष्य उत्थया उत्तिष्ठति यावत्-यौव श्रमणो भगवान् महावीरः, यावत्-पर्युपास्ते, गौतमइति ! श्रमणो भगवान् श्रमण भगवान् महावीर के समीप महासद्धिवाले यावत् महाप्रभाववाले दो देव प्रादुर्भूत हुए हैं (तं नो खलु अहं ते देवे जागामि कयराओ कप्पाओ वा, सग्गाओ वा, विमाणाओ वा कस्स वा अत्थस्स अट्ठाए इहं हवं आगया तं गच्छामि गं भगवं महावीरं वदामि, नमसामि, जाव पज्जुवासामि ) मैं उन देवों को जानता नहीं हूं कि वे किस कल्प से, किस देवलोक से, किस विमान से और किस कारण से यहां पर शीघ्र आये हैं । इसलिये जाऊँ और भगवान महावीर को वंदना करूँ नमस्कार करूँ यावत् उनकी पर्युपासना करूँ, ' इमाइं च णं एयाख्याई वागरणोइं पुच्छिस्सोमि त्तिकट्टु एवं संपेहेइ ) और इस प्रकार के इन प्रश्नों को उनसे पूछ इस प्रकार से उन्हों ने विचार किया ( संपेहित्ता उठाए उठेइ ) विचार कर फिर वे अपनी उत्थान शक्ति से उठें ( जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पज्जुवासइ) और यावत् जहां पर श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां पर आये यावत् उनका पर्युपासना करने लगे । (गोयमाइ!समणे भगवं महावीरं भगवं गोयम महा प्रमायुक्त मे हेवे। ५४८ च्या छे. ( त नो खलु अह ते देवे जाणामि कयराओ कप्पाओ वा, सग्गाओ वाविमाणाओ वा कस्स वा अत्थस्स अट्टाए इह हव्व आगया त गच्छामि ण भगवौं महावीर वदामि, नमसामि, जाव पज्जुवासामि ) હું આ દેવને ઓળખતા નથી તેઓ ક્યા કપમાંથી, કયા દેવકમાંથી, ક્યા વિમાનમાંથી, કયા કારણે અત્યારે અહીં આવ્યા છે, તે હું જાણતા નથી. તે હું ભગવાન મહાવીર પાસે જઉં, તેમને વંદન કરૂં, તેમને નમસ્કાર કરું, तेनी शुश्रषा ४३, ( इमाइं च णं एयारूवाई वागरणाई पुच्छिासामि त्तिकद एवं सपेहेइ) भने म मारनामा प्रश्नोतमने पूछ', सवा तभणे पियार ध्या. ( संपेहित्ता उदाए उठेइ) से मारनी वियार ४शन तेस तेमनी उत्थानशतिथी ४या. (जाव जेणेव समणे भगवमहवीरे जाव पज्जुवासइ) અને જ્યાં મહાવીર પ્રભુ વિરાજમાન હતા, ત્યાં આવ્યા અને વંદણું, નમસ્કાર ४शन तेमनी ५युपासना ४२१। साया, (गोयमाइ! समणे भगवं गोयमं एवं श्री.भगवतीसत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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