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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ५ उ० ४ सू० ५ शिष्यद्वयस्वरूपनिरूपणम् २४५ एवं वयासी ) हे गौतम ! इस प्रकार से संबोधित करके भगवान् महावीर ने भगवान् गौतम से ऐसा कहो- ' से गृणं तव गोयमा ! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अन्झथिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वं आगए ) हे गौतम ! ध्यान की समाप्ति में वर्तमान तुम्हें यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् विचार उत्पन्न हुआ है यावत् तुम इसी कारण से जहां पर मैं बैठा हुआ हूं वहां पर शीघ्र आये हो ( से गूणं गोयमा ! अढे समझे ) कहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ है न ? अर्थात् कहो गौतम ! यही यात है न ? (हंता अस्थि तं गच्छाहिणं गोयमा ! ) हां भदन्त ! यही बात है । तो हे गौतम ! तुम उन देवों के पास जाओ ( एए चेव देवा इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरेहिति) वे देव ही तुम्हें इन प्रश्नों के विषय में खुलासा करके समझावेगे । (तएणं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुनाए समाणे भगवं महावीरं वंदइ, नमंसह, वंदित्ता जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर द्वारा आज्ञा पाकर उन वयासी ) " ॐ गौतम !” से साधन रीने श्रम मवान महावीर गौतम मानने ॥ प्रमाणे ह्यु-" से गूणं तव गोयमा ! झणंतरियाए बहमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव-जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्व आगए ) હે ગૌતમ! ધ્યાનની સમાપ્તિ થતા તારા મનમાં આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક વિચાર આવ્યો હતો ( ઉપર તે વિચાર દર્શાવ્યું છે, ) અને તે કારણે જ तुं तुरत भारी पासे मा०येछे. ( से गूणं गोयमा ! अटूठे समढे १ ) 3 गौतम ! भारी वात भरी छ ने ? (हंता अस्थि-त गच्छाहि ण गोयमा !) "0 महन्त ! मापनी पात साथी छ. " तो गौतम ! तु ते हे। पासे . ( एए चेव देवा इमाई एयारूवाई वागरणाई वागरेहिंति ) ते त से प्रश्नोना तने वाम मा५ते. (तएण' भगव' गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अब्भणुनाए समाणे भगव वदह, नमसइ, वदित्ता नमंसित्ता जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए) त्यारे श्रम मनपान मडावी२नी माज्ञा sa,
श्री. भगवती सूत्र:४