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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०५ उ0 ४ सू०५ शिष्यवयस्वरूपनिरूपणम् २४३ वन्देते, नमस्यतः, वन्दित्वा, नमस्थित्वा, मनसा चैत्र शुश्रूषमाणौ, नमस्यन्तौ, अभिमुखौ यावत्-पर्युपासाते। तस्मिन् काले, तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूति म अनगारो यावत्-अदरसामन्ते, ऊर्ध्वजानुः, यावत्-विहरति, ततस्तस्य भगवतो गौतमस्य ध्यानान्तरिकायां वर्तमानस्य अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिको यावत्-समुदपद्यत-एवं खलु द्वौ देवी महर्षिको, यावत्-महानुभागौ श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकं प्रादुर्भूतौ, उन्हों ने श्रमण भगवान महावीर की स्तुति की और उन्हें नमस्कार किया । वंदना नमस्कार करके मन से ही शुश्रूषा करते हुए और नमस्कार करते हुए वे दोनों देव फिर भगवान महावीर के समक्ष बैठ गयेयावत् भगवान्की पर्युपासना करने लगे। (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल और उस समयमें (समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूइ णामं अणगारे जाव अदूरसामंते उडू जाणू जाव विहरह) श्रमण भगवान् महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार यावत् न बहुत दूर और न बहुत पास अर्थात् उचित स्थान पर उर्व जानु करके यावत् बैठे हुए थे। (तएणं तस्स भगवओ गोयमस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था) जब उन भगवान् गौतम का ध्यान संपूर्ण हो चुका तब उन्हें यह ऐसा आध्यात्मिक यावत् संकल्प उद्भूत हुआ ( एवं खलु दो देवा महिडिया जाव महाणुभागा ममणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउन्भूया) તેમણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની સ્તુતિ કરી, વંદના કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદના નમસ્કાર કરીને મનથી જ ભગવાનની શુશ્રષા કરતાં અને ભગવાનને નમસ્કાર કરતાં તેઓ મહાવીર પ્રભુ સમક્ષ બેસી ગયા, અને તેમની પર્યું. पासना ४२१॥ सा गया ( तेणं कालेणं तेणं समएणं) ते आणे भने त समये (समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूइ णाभं अणगारे जाव अदरसामंते उड्ढे जाणू जाव विहरइ) श्रम समान मडावीरन! भुज्य शिष्य ઇન્દ્રભૂતિ નામના અણગાર, તેમનાથી બહુ દૂર પણ નહી અને બહુ નજીક પણ नही सेवा स्थान 6 मे ता (तएणं तस्ल भगाओ गोयमस्स झाणं. तरियाए वहमाणस्स इमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुपज्जित्था ) या ते साशन ગૌતમનું ધ્યાન સંપૂર્ણ થયું, ત્યારે તેમના મનમાં આ પ્રકારનો આધ્યાત્મિક विया२ थयो. (एवं खलु दो देवा महिड्ढिया जाव महाणुमागा समणस्स भयगओ महावीरस्स अंतिय पाउठभूया) श्रम भगवान महावीरनी सभी महाऋद्धि अन શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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