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________________ २२६ भगवतीसूत्रे अतिमुक्तः कुमारश्रमगः अन्यदा कदाचित् महादृष्टिकाये निपतति कक्षा-प्रतिग्रहरजोहरणम् आदाय बहिः संप्रस्थितो विहाराय, ततः खलु अतिमुक्तः कुमारश्रमणः वाहकं वहमानं पश्यति, दृष्ट्वा मृत्तिकया पालि बध्नाति, बद्ध्वा 'नौका मम नौका अतिमुक्तकवक्तव्यता तेणं कालेणं तेणं समएणं' इत्यादि सूत्रार्थ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं ) उस काल और उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी) श्रमण भगनान महा. वीर के शिष्य एक (अइमुत्ते) अतिमुक्त (णामं) नामके अनगार थे। ये (कुमारसमणे) कुमारश्रमण थे-अर्थात् बाल्यावस्था में ही इन्होंने दीक्षा धारण की थी (पगइभदए जाव विणीए ) ये प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। (तएणं से अहमुत्ते कुमारसमणे अन्नया कयाई महाबुटिकायंसि निवयमाणंसि) एक दिन की बात है कि जब बहुत अधिक वरसा हो रही थी उस के बन्द होने पर कुमार श्रमण अतिमु. तक (कक्खपडिग्गह-रयरण मायाए बहिया संपट्टिए विहारए) कक्षा कांखमें रजोहरण को धारण कर एवं हाथ में पांत्र को लेकर वहार भूमि के लिये- बहार गये । (तएणं अतिमुक्त कुमारसमणे वाहयं वहमाणं पासइ) इसके बाद उन कुमार श्रमण अतिमुक्तक अनगार ने बहते हुए पानी को देखा । ( पामित्ता महियाए पालिं बंधइ ) देखकर उन्हों ने उसके आस पास मिट्टी की एक पाल અતિમુક્ત અણગારની વક્તવ્યતા– " तेण कालेण तेण समएण" त्याह सूत्रार्थ- ( तेण कालेण तेण समएण) से आगे सनत समये (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी) श्रम मवान महावीरन शिष्य (अइमुत्ते णाम) मतिभुत नामना से मार हता. ( कुमारसमणे) તેઓ કૂમારશ્રમણ હતા. એટલે કે બાલ્યાવસ્થામાં જ તેમણે દીક્ષા લીધી ती (पगइ भरए जाव विणीए) तेमा मद्रिय प्रकृतिवाणात अन विनात पर्यन्तना गुथी युटत al. (तएण से अइमुत्ते कुमारसमणे अन्नया कयाई महावुद्वि काय सि निवयमाण सि) वे से हिस मेषु मन्यु मारे १२. સાદ વરસી રહ્યા પછી ( વરસાદ બંધ થયા ત્યરે) તે અતિમુક્તક નામના माणमुनि ( कक्खपडिग्गह-रयहरणमायाए बइिया संपठिए विहाराए ) समां રજેહરણ અને હાથમાં માત્રને લઈને શરીર ચિંતાની નિવૃત્તિ માટે બહાર ગયા. (तपण अतिमुक्ते कुमारसमणे वाहय वहमाण पासइ) त्यां ते मतिभुत मासभुनिये व पाणी यु. (पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ) पडेना पान ने श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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