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प्रमेयचन्द्रिका टोका श० ५ उ०४ सू० १ छमस्थशब्दश्रवणनिरूपणम् १८९ षदिशं शृणोति । छद्स्थः खलु भदन्त ! मनुष्यः किम् आराद्गतान् शब्दान् शृणोति पारगतान् शब्दान् शणोति ? गौतम ! आराद्गतान् शब्दान् शृणोति, नो पारगतान् शब्दान् शगोति यथा खलु भदन्त ! छद्मस्थो मनुष्यः आराद्गतान् शब्दान् शणोति, नो पारगतान् शब्दान् शणोति तथा खलु भदन्त ! केवली मनुप्यः किम् आराद्गतान् शब्दान् शणोति, नो पारगतान् शब्दान शणोति ? गौतम् , केवली आराद्गतं वा, पारगतं वा, सर्वदुरमूलम् अनन्तिकं शब्दं जानाति! हैं तभी सुनता है अस्पृष्ट नहीं सुनता है । योवत् स्पृष्ट होने पर वह छहों दिशाओं से आगत शब्दों को सुनता है। (छउमत्थेणं भंते ! मणूसे किं आरगयाइं सहाइं सुणेह, पारगयाइं सद्दाइं सुणेइ ) हे भदन्त ! छद्मस्थ मनुष्य पास के शब्दों को सुनता है ? या दूर रहे हुए शब्दों को सुनता है ? ( गोयमा ! आरगयाइं सहाई स्सुणेइ, नो पारगयाइं सद्दाणि सुणेइ ) हे गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य पास के शब्दों को सुनना है दूर रहे हुए शब्दों को नहीं सुनता है । ( जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से आरगयाइं सद्दाइं सुणेइ, णो पारगयाइं सद्दाई सुणेइ ) हे भदन्त ! जैसे छमस्थ मनुष्य पास के शब्दों को सुनता है, दूर के शब्दों को नहीं सुनता है ( तहा णं भंते ! केवली मणुस्से किं आरगयाइं सद्दाइं सुणेइ, णो पारगयाइं सहाई सुणेइ) उसी प्रकार से केवली क्या पास के ही शब्दों को सुनता है और दूर के शब्दों को नहीं सुनता है ? (गोयमा! केवली णं आरगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणंतियं सदं जाणइ पा. सइ) हे गौतम ! केवली मनुष्य तो पास के शब्दों को दूर के शब्दों को तथा अनंतिक बीच के शब्दों को जानते हैं और देखते हैं । ( से केणद्वे સાંભળે છે, અસ્પૃષ્ટ હોય ત્યારે સાંભળતો નથી. પૃષ્ટ થાય ત્યારે એ शिमामाथी मावत ने ते सोमणे छे. ( छ उमत्थेणं भंते ! मणसे कि आरगयाई सहाई सुणेइ, पारगयाइं सदाई सुणेइ ) के महन्त ! छमस्थ भनुष्य 1008 शहाने सालणे छ, ६२ना होने सलत नथी. जाहाणं भंते ! छउमत्थे मणुस्से आरगयाई सहाई सुणेइ, णो पारगयाइं सहाई सुणेइ) હે ભદન્ત! જેમ છાસ્થ મનુષ્ય નજીકના શબ્દોને સાંભળે છે, દૂરના શબ્દને सोनात नथी, ( तहाणं भंते ! केवली मणुस्से किं आरगयाइं सहाईसुणेइ, णो पारगयाइ सहाई सुणेइ १) तेम शुपक्षी मनुष्य ५ ननण्होने सलले छ मनन शन्होने सानत नयी (गोयमा ! केवली णं आरगयं वा पारगय वा सम्बदरमलमणतियं सदं जाणइ पासइ) गीतम! दी तो न हो ने इरना awaने, मन तेभनी वयेना होने ५४ छ भने भेछ. (से
श्री. भगवती सूत्र : ४