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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० १ घायुस्वरूपनिरूपणम् १११ 'ईसिं पुरेवाया ' ईषत्पुरोवाताः 'पत्थावाया' पथ्याः वाताः, 'मंदा वाया' मन्दा पाताः 'महावाया' महा वाताः 'वायति' वान्ति, 'तया णं' तदा खलु 'पञ्चत्थिमेण वि' पश्चिमेऽपि 'ईसिंपुरे वाया' ईषत्पुरोवाताः, पथ्या वाताः, मन्दा वाताः, महावाताः वान्ति ? 'जयाणं' यदा च ‘पच्चत्थिमेणं' पश्चिमे खलु 'ईसिंपुरे वाया' ईपत्पुरोवातादयो वान्ति, ' तयाणं' तदा खलु किम् 'पुरथिमेण वि ' पौरस्त्येऽपि ईषत्पुरोवातादयो वान्ति ? भगवान् तदङ्गीकुर्व(पत्थावाया ) पथ्यवात (मंदावाया ) मंद वात, और ( महावाया) महावात ये वायु (वायंति ) चलते हैं (तया णं ) उस समय ( पच्चस्थिमेणं वि) पश्चिमदिशा में भी ( ईसिंपुरे वाया ) ईषत्पुरोवात, पथ्यवात, मंदवात और महावात ये वायु चलते हैं। और ( जया णं) जब (पच्चत्थिमेणं ) पश्चिममें ये ( ईसिंपुरे वाया ) ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, तब क्या (पुरस्थिमेणं वि ) पूर्वदिशा में भी ये ईपत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं क्या? इस प्रश्न का स्वीकृति रूप में उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता गोयमा ) हे गौतम ! तुम्हारा कहना सत्य है (जया णं ) जप (पुरथिमेणं ) पूर्वदिशा में ये ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया णं ) तब (पच्चत्थिमेणं वि ) पश्चिम दिशा में भी ये ही वायु चलते हैं। और ( जया णं ) जब ( पच्चत्थिमेणं वि ईसिंपुरे वाया०) पश्चिम में भी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया "ईसिंपुरेवाया ” ध्षाशात " पत्थावाया ” पथ्यपात. " मंदावाया, '' मन्हपात, भने “ महावाया " भावात "वायंति" पाय छ, “ तयाणं " ते सभये " पच्चत्थिमेण वि" पश्चिमहिशमां ५५] " ईसिंपुरेवोया " त्याह) शुष. પુરવાત, પચ્યવાત, મન્દવાત અને મહાવાત વાયુ વાતા હોય છે ? અને "जयाण " २ समये “ पच्चत्थिमेणं " पश्चिमहिशामा " ईसिंपुरेवाया " ४५
शपात माहि वायु वात डाय छे, " तया ण" त्यारे “पुरथिमेण वि" પૂર્વ દિશામાં પણ ઈષત્પરોવાત આદિ ચારે પ્રકારના વાયુઓ જ શું વાતા હોય છે? ___आप्रश्न उत्तर भापता महावीर प्रभु ४९ छ–“ हता, गोयमा! " ७, गौतम ! मेरा मन छे." जयाण पुरथिमेण" त्याह) न्यारे पूर्व शिमा पत्५२।१ात माल वायु याताय छ, “तयाण पत्चत्थिमेण वि" પશ્ચિમ દિશામાં પણ ઈષપુરવાત આદિ વાયુઓ જ વાતા હોય છે. અને "जयाणं पच्चत्थिमेणं वि ईसिंपुरेवाया" न्यारे पश्चिम दिशामा षष. शपात मा वायुमे। पाता जय छ, “ तयाणं पुरस्थिमेणं वि इसिंपुरेवाया "
श्री. भगवती सूत्र:४