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________________ २०९४ भगवतीस्त्र पेण परिधिना ताः कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः । गौतमः पृच्छति- कण्हराईओ णं भंते ! के महालियाओ पण्णत्ताओ?' हे भदन्त ! कृष्णराजयः खलु किंमहालयाः कियन्महत्या प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे, जाव-अद्धमासं वीईवएना' हे गौतम ! यदा कश्चित् महर्दिको यावत्-महानुभावो देवः मध्यमाङ्गुष्ठसंयोगाभिघातजन्यध्वनिमूचकहस्तव्यापाररूपाः छोटिका ताभिः तिमृभिः पूर्ववर्णितमेनं जम्बूद्वीपं द्वीपं यया त्वरितया चपलया वेगवस्या यावत्-दिव्यगत्या एकविंशतिवारान् प्रदक्षिणीकृत्य पुनरागच्छेत् तयैव गत्या निरन्तरम् अर्धमास यावत् व्यतिव्रजेत् तदा ' अत्थेगइयं कण्हराई वीईवएज्जा' अस्ति संभवति यत्जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ) परिक्षेप इन सब का असंख्यात हजार योजनों का है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-(कण्हराईओ णं भंते ! के महा. लियाओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! ये कृष्णराजियां कितनी बड़ी कही गई हैं ? इसके उत्तर में भगवान् उनसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव अद्धमासं वीईवएजा) जब कोह महर्दिक यावत् महानुभाववाला देव तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है इतने समयरूप काल में पूर्व में वर्णित इस समस्त जंबूदीप को त्वराघाली यावत् दिव्यगति द्वारा इक्कीस बार प्रदक्षिणा देकर आ जावेअब वही देव इसी तरह की अपनी दिव्य गति द्वारा निरन्तर-पन्द्रह १५ दिन तक चलता रहे-तब कहीं जाकर वह (अस्थेगइयं कण्हराई परिक्खेवेण पण्णताओ) तेमनी परिधि (परिमिति रसयात तर જનની કહી છે. गौतम सामी ३ वा प्रश्न रे छ है (कण्हराईओ भते ! के महालियाओ पण्णत्ता मो?) 3 HErd! ते ४०१२। िमानवी विडीछ? तेना उत्तर २५ भापी२ प्रभु ४ छ-(गोयमा !) 3 गौतम ! (अय' ण जंबुद्दीवे दीवे जाव अद्धमासं वीईवएज्जा) १४ मे महद्धि माह વિશેષણોવાળે દેવ, ત્રણ ચપટી વગાડતા જેટલો સમય લાગે એટલા સમયમાં પૂર્વ વણિત (આ ઉદ્દેશકના પહેલા સૂત્રમાં જંબુદ્વીપને વિસ્તાર અને પરિ. ક્ષેપ બતાવ્યું છે) સમસ્ત જબૂદ્વીપની એકવીસ વાર પ્રદક્ષિણ કરી લેવાને ધારો કે સમર્થ છે. એ તે દેવ પિતાની તે વરાયુક્ત અને દિવ્ય ગતિથી निरन्तर १५ दिवस सुधी याच्या ४२, तो भडामुश्तीने ते ( अत्थेगड्यं कण्हराई वीइवएग्जा ) gilr सुधी पडेयी , मेटले श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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