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________________ प्रमेयचन्द्रिका 0 ० ६ उ० ५ सू० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपणम् १०९३ त्रिकोणे स्तः, शेषाः सर्वाः अपि चतुर्दिगभागाभ्यन्तरवर्तिन्यश्चतस्रोऽपि कृष्णराजयः चतुरस्त्राः चतुष्कोणा एवं सन्तीति संग्रहगाथार्थः॥१॥ गौतमः पृच्छति-' कण्हराईओ णं भंते ! केवइयं आयामेणं, केवइयाओ विक्खंभेणं, केवइयाओ परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ ? ' हे भदन्त ! कृष्णराजयः खलु कियत्यः-कियत्परिमाणा आयामेन दैर्येण प्रज्ञप्ताः १, कियत्यश्व विष्कम्भेण विस्तारेण प्रज्ञप्ताः कियत्यश्च परिक्षेपेण परिधिना प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई आयामेणं' हे गौतम ! कृष्णराजयः आयामेन दैयेण असंख्येयानियोजनसहस्राणि वर्तन्ते, तथा 'संखेज्जाई जोयणसहस्साई विखंभेणं' संख्येयानि योजनसहस्राणि विष्कम्भेण विस्तारेण वर्तन्ते, एवम् ' असंखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ' असंख्येयानि योजनसहस्राणि परिक्षे. जियां तीन कोने वाली हैं-अर्थात् तिखूटी हैं। बाकी की चारों दिशाओं की अभ्यन्तर कृष्णराजियां सष चार कोनों वाली ही हैं ऐसा इस गाथा का अर्थ है। ____ अब गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(कण्हराईओणं भंते ! केवइयं आयामेणं, केवइयं विखंभेणं पण्णत्ता) हे भदन्त ! ये कृष्णराजियां आयाम की अपेक्षा कितनी लंबी हैं और विष्कंभ की अपेक्षा कितनी चौडी हैं-तथा इनका परिक्षेप कितना है-इसके उत्तर में भगवान ने उनसे कहा-(गोयमा) हे गौतम! (असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं आयामेणं) कृष्णराजियां आयाम-लंबाई की अपेक्षा से असंख्यात हजार योजन की हैं तथा-(विक्खंभेणं संखेज्जाई जोयणसहस्साई ) विस्तार की अपेक्षा से संख्यात हजार योजन की हैं। और (असंखेज्जाई બહાર આવેલી બે કૃષ્ણરાજિઓ ત્રણ ખૂણાવાળી છે, બાકીને એટલે કે ચારે દિશાઓમાં અંદર આવેલી ચારે કૃષ્ણરાજિઓ ચાર ખૂણાવાળી છે. હવે ગૌતમ તેમના વિસ્તાર આદિ વિષે આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે છે(कण्हराईओ ण भते ! केवइयं आयामेण केवइय विक्ख भेण, पण्णताओ?) હે ભદન્ત ! કૃષ્ણરાજિઓની લંબાઈ કેટલી છે ? તેમની પહોળાઇ કેટલી છે? તેમની પરિધિ (પરિમિતિ ) કેટલી છે? तन त२ माता मडावी२ प्रभु ४ -( गोयमा !) गौतम ! (असखेज्जाई जोयणसहस्साई आयामेण) निसानी मा असयात Sat२ योनी छे, (विक्खंभेणं संखेज्जाई जोयण सहरसाई) मने तमनी पापा ज्यात २ योगाननी छ, भने (असंखेज्जाई जोयणसहरसाई શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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