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________________ १०९२ भगवतीस्त्रे कोणे स्तः इत्यर्थः । तथा ' दो उत्तर-दाहिणवाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ' द्वे उत्तर-दक्षिणबाह्ये उत्तर-दक्षिणदिग्भागबहिर्वतिन्यौ कृष्णराजीव्यने त्रयः अस्राः अंशाः ययोस्ते त्रिकोणेस्तः इत्यर्थः । तथा 'दो पुरथिम-पच्चस्थिमाओ अमितराओ कण्हराईओ चउरंसाओ' द्वे पौरस्त्य-पश्चिमाभ्यन्तरिके पूर्व-पश्चिम दिग्भागाभ्यन्तरवर्तिन्यौ कृष्णराजी चतुरस्र चत्वारः अत्राः अंशाः ययोस्ते चतुष्कोणे स्तः इत्यर्थः । तथा 'दो उत्तर-दाहिणाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरंसाओ' द्वे उत्तर-दक्षिणाभ्यन्तरिके उत्तर-दक्षिणदिग्भागाभ्यन्तरवर्तिन्यौ कृष्णराजी चतुरस्र चत्वारोऽस्राः अंशाः ययोस्ते चतुष्कोणे स्तः इत्यर्थः । उक्तार्थःसंग्रहाय गाथामाह__ 'पुव्वा-वरा छलंसा तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा। अभितर चउरंसा, सव्वा वि य कण्णराईओ' ।। १ ।। इति, पूर्वाऽपरे पूर्व-पश्चिमदिग्भागस्थिते बहितिन्यौ द्वे कृष्णराजी षडझे षट्कोणे स्त', तथा दक्षिणोत्तरे दक्षिणोत्तरदिग्भागस्थिते बाह्ये बहिर्वतिन्यौ द्वे कृष्णराजी व्यसे जियां हैं वे छह कोणोंवाली हैं। तथा दो उत्तर दाहिण बाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ) उत्तरदिशा और दक्षिणदिशा के बाहर की जो दो कृष्णरजियां हैं, वे तीन अंशों-कोनोंवाली हैं। तथा-(दो पुरथिमपञ्चस्थिमाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरंसाओ) पूर्वपश्चिमदिशा की जो भीतर की दो कृष्णराजियां हैं वे चौखूटी हैं-चार कोनोंवाली हैं। (दो उत्तरदाहिणाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरंसाओ) उत्तर द. क्षिणदिशाकी जो भीतर की दो कृष्णराजियां हैं वे भी चार कोनोवाली है इसी अर्थ को संग्रह करनेवाली यह गाथा है-(पुव्वा-वरा छलंसा इत्यादि । पूर्वापर-पूर्वपश्चिमदिग्भाग बहिर स्थित दो कृष्णराजियां छह कोने चाली हैं, तथा दक्षिण उत्तरदिग्भागबहिःस्थित दो कृष्णरा. उत्तरदाहिण बाहिराओ कण्हराईओ तसाओ) उत्तर ERAL भने क्षिशिम બહારની જે બે કૃષ્ણરાજિઓ છે, તે ત્રણ ખૂણાવાળી ( ત્રિકેણાકારની) છે. तथा (दो पुरस्थिम-पच्चत्थिमाओ अभितराओ कण्हराई ओ चउरसाओ) पूर्व અને પશ્ચિમ દિશામાં અંદરની જે બે કૃષ્ણરાજિ એ છે, તે ચાર ખૂણાવાળી (यारस।।२नी) छे, (दो उत्तरदाहिणाओ अभितराओ कण्हराई ओ चउरसाओ )भने ઉત્તર-દક્ષિણમાં અંદરની જે બે કૃષ્ણરાજિઓ છે, તે પણ ચાર ખૂણાવાળી છે. और मथन। सड ४२नारी ॥था नीय प्रभारी छ- पुवावर' त्याल આ ગાથાને ભાવાર્થ-પૂર્વાપર-પૂર્વ અને પશ્ચિમ દિવભાગમાં બહાર આવેલી બે કૃષ્ણરાજિએ છ ખૂણાવાળી છે, દક્ષિણ અને ઉત્તર દિક્ષાગમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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