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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ६ उ० ५ सू०१ तमस्कायस्वरूपनिरूपणम्
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भावः । गौतमः पृच्छति - 'अस्थि णं भंते! तमुकाए गामा इवा, जाव- सन्निवेसा इवा ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु यत् तमस्काये ग्रामाः इति वा यावत्सन्निवेशाः समागतसार्थवाहादिनिवासस्थानानि भवन्ति किम् ? यावत्करणात् आकर नगर - खेट - फर्बट - मडम्ब - द्रोणमुख-पत्तन-निगमाश्रम-संवाहानां संग्रहः, तत्र आकराः स्वर्णरत्नाद्युत्पत्तिस्थानानि इति वा नगराणि - अष्टादशकर व र्जितानि इति वा खेटानि - धुलिमाकारवेष्टितानि इति वा, कर्बटानि - कुत्सितग्रामा इति वा, मडम्बानि-सार्ध - क्रोशद्वयान्तरग्रामान्तररहितानि इति वा, द्रोणमुखानि - जलस्थलपथोपेतानि जनस्थानानि पत्तनं समस्तवस्तु प्राप्तिस्थानं निगमाः - प्रभूततरवणिग्जननिवासा इति वा,
करते हैं - ( अस्थि णं भंते ! तमुक्काए गामाह वा जाव सन्निवेसाइवा ) हे भदन्त ! क्या यह बात संभवित होती है कि उस तमस्काय में ग्राम या यावत् सन्निवेश हों ? यहां यावत् शब्द से " आकर, नगर निगम, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, आश्रम और संवाह इन का संग्रह हुआ है। जहां पर स्वर्ण रत्न आदि पदार्थ उत्पन्न होते हैं उसका नाम आकर है, १८ अठार प्रकार के टेक्सों से रहित जन स्थान का नाम नगर है, जिसमें अधिक संख्या में व्यापारी जनोंका निवास हो उसका नाम निगम है। धूल के प्राकार से वेष्टित जनस्थान का नाम खेट है, छोटे गाँव का नाम कर्बट है। जिसकी चारों दिशाओं में २॥ कोश तक कोई गाँव न हो उसका नाम मडम्ब है । जलमार्ग और स्थलमार्ग इन दोनों मार्गो से ही जिसमें जाया जाना होवे उसका नाम द्रोणमुख है। तापस
प्रश्न - ( अस्थि
भंते ! तमुक्काए गामाइ वो, जाव सन्निवेसाइ वा १ ) हे लदृन्त ! शुं तभस्सायमा गाम, आ४२, नगर निगम, भेट, अर्जंट, મડમ્બ, દ્રોણુમુખ, પત્તન, આશ્રમ, સવાહન અને સન્નિવેશ હાય છે ખરાં ? (जान) पहथी थडे अश्वामां आवेलां शो सहित अर्थ माग्यो छे
જ્યાં સુવર્ણ રત્ન આદિ પદાર્થ ઉત્પન્ન થાય છે, એ સ્થળને આકર કરે છે. ૧૮ પ્રકારના કરાથી રહિત જનસ્થાનને નગર કહે છે. જ્યાં અધિક પ્રમાણમાં વ્યાપારીએ રહેતા હોય એવાં સ્થાનને નિગમ કહે છે. ધૂળના કેટની ઘેરાયેલા જનસ્થાનને ખેટ કહે છે. નાના ગામને કટ કહે છે. જેની ચારે દિશામાં રા કેશ પન્તમાં કાઇ પણ ગામ ન હેાય એવા સ્થાનને મડમ્બ કહે છે. જળમાર્ગ અને જમીન માગે-એમ બન્ને માગે-જે સ્થળે જઈ શકાય છે એવા સ્થળને દ્રોણુમુખ કહે છે. જ્યાં તાપસા રહેતા હોય, તે સ્થાનને
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श्री भगवती सूत्र : ४