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________________ भगवतीस्त्रे आश्रमा:-तापसजननिवासा इति वा, संवाहा:-कृषिवलैर्धान्यरक्षार्थ निर्मितानि दुर्गभूमिस्थानानि-इति वा, एते किं तमस्काये सन्ति ? इति प्रश्नः । भगवानाह'णो इणटे समढे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः तमस्काये प्रामादिसन्निवेशान्ताः न भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! तमुक्काए उराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति, संवासंति ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु तमस्काये उदारा: महान्तः बलाहका:-मेघाः संस्विद्यनि स्निह्यन्ति-संस्येदजनकपुद्गलस्नेहसंपत्त्या आर्द्रा भवन्ति किम् ?, संमूर्च्छन्ति-उछिता भवन्ति परस्परसं योगेन एकत्रिता भवन्ति, तत्पुद्गलानां मीलनात् तदाकारत या उत्पद्यते किम् ? सवर्षन्ति-वृष्टिं कुर्वन्ति किम् ? । भगवानाह- हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् अस्ति जनों के आश्रम स्थान का नाम आश्रम है। किसान लोग जहां पर अपने अनाज आदि की रक्षा के निमित्त जो दुर्गम भूमि स्थान बना लेते हैं उसका नाम संवाह है "ये सब जनस्थान क्या उम लमस्काय में होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( गो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं, अर्थात् उस तमस्काय में ये सब कुछ नहीं है ! गौतम पुनः प्रभु से प्रश्न करते हैं कि ( अस्थि णं भंते ! तमुक्काए उराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति संवासंति) हे भदन्त ! उस तमस्काय में क्या बड़े २ मेध संस्वेद (पसीना) जनक पुद्गल स्नेह रूप संपत्ति से गीले होते हैं ? परस्पर के संयोग से क्या ये एकत्रित होते हैं ? अर्थात् मेघ के पुद्गलों के मिलने से उन पुदलों की मेघों के रूप में उत्पत्ति होती है क्या ? वे मेघ क्या उसमें बरसते हैं ? इसके આશ્રમ કહે છે. ખેડૂતે જ્યાં પિતાના અનાજ આદિની રક્ષા માટે ગમ ભૂમિસ્થાન બનાવી લે છે એવા સ્થાનને સંવાહ કહે છે. શું આ બધાં જનસ્થાને તમસ્કાયમાં હોય છે? એ ગૌતમનો પ્રશ્ન છે. तेन। उत्तर मापता मडावीर प्रमु छ-" णो इणट्रे समटे" . ગૌતમ! તમસ્કાયમાં ગામ, આકર આદિ કશું પણ હોતું નથી गौतम. सभी महावीर प्रसुने मेवे। प्रश्न पूछे छ ॐ ( अस्थिण भते ! तमुक्काए उराला बलाहया ससेयति, समुच्छति सवासति ? ) महन्त ! તે તમસ્કાયમાં શું વિશાળ મેઘ સંવેદ (પરસેવો) જનક પુદ્ગલ નેહરૂપ સંપત્તિથી ભીંજાય છે ખરાં? પરસ્પરના સંયોગથી શું તેઓ એકત્રિત થાય છે ખરાં? એટલે કે મેઘના પુદ્ર સાથે સંયોગ પામવાથી તે પુલોની મેઘના રૂપમાં શું ઉત્પત્તિ થાય છે ખરી ? તે મેઘ શું તેમાં વરસે છે ખરાં ? श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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