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________________ - - - - - -------- ---- १०६४ मगवतीस्त्र योजनम् तमस्कार्य व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रामेत् , 'अत्थेगइयं नो तमुक्कायं वीईवइज्जा' अस्त्येककं संभवति यद् द्वितीयम् असंख्यातयोजनमानं तु तमस्कायं नो नैव ताहश्यापि गत्या व्यतिव्रजेत् व्यतिक्रमितुमहेत् । एवं प्रकारेण तमस्कायस्य विशालता मुपसंहरबाह-' एमहालए णं गोयमा ! तमुक्काए पण्णत्ते' हे गौतम ! इयन्महालयः एतावान विशालः तमस्कायः प्रज्ञप्तः । गौतमः पृच्छति='अस्थि णं भंते ! तमुकाए गेहा इ वा, गेहावणा इ वा ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति स्खलु तमस्काये गेहानि गृहाणि वा सन्ति, गेहापणाः गृहहट्टा वा सन्ति किम् ? भगवानाह-' णो इणद्वे समडे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तमस्काये गृहा वा, गृहापणा वा न भवन्तीति जो (अत्थेगइयं नो तमुक्कायं वीईवइज्जा ) असंख्यात योजन प्रमाण वाला तमस्काय है उस तक तो यह देव इतनी अधिक उत्कृष्टता एवं त्वरा आदि विशेषणों वाली गति से भी नहीं पहुँच सकता है। इसकथन से प्रभु ने तमस्काय की विशालता का वर्णन किया है इसी बात को उन्हों ने (ए महालए णं गोयमा! तमुक्काए पपणत्ते) इम सूत्र पाठ द्वारा गौतम को उपसंहाररूप में समझाया है। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि जब तमस्काय इतना अधिक विशाल है तो (अस्थि णं भंते ! तमुक्काए गेहाइवा, गेहावणाइ वा) हे भदन्त ! उसमें क्या घर हैं या गृहापण-गृह हार हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं (णो इणढे समढे) हे गौतम ! उस विशाल तम तमस्काय में न घर हैं और न गृहापण हैं। गौतम पुनः प्रभु से प्रश्न पार शश छे. ५२न्तु 'अत्थेगइयनो तमुक्काय वीईवइज्जा " असण्यात જનના વિસ્તારવાળો જે તમસ્કાય છે, ત્યાં સુધી તે તે દેવ આટલી બધી અધિક, ઉત્કૃષ્ટતા, વરા આદિ વિશેષણવાળી ગતિથી પણ પહોંચી શકો નથી. આ કથન દ્વારા મહાવીર પ્રભુએ તમસ્કાયની વિશાળતાનું પ્રતિપાદન ४. छ. मे पातने तेभो “एमहालये णं गोयमा ! तमुक्काए पण्णत्ते" આ સૂત્રપાઠ દ્વારા ગૌતમ સ્વામીને ઉપસંહાર રૂપે સમજાવી છે. હવે ગૌતમ સ્વામી એ જાણવા માગે છે કે આટલા વિશાળ સમસ્કાયમાં १२, डोट माहिछे नही. ( अत्थिणं भंते ! तमुस्काए गेहाइ वा गेहावणाइ वा ?) હે ભદન્ત ! જે તમસ્કાય આટલો બધો વિશાળ છે, તે તેમાં શું ઘર, છે? डापार ( डट) छ ? उत्तर--" णो इणट्रे समहे" 3 गौतम ! ते विण तमयमा घरे। પણ નથી અને હાટ પણ નથી. श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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