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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.४ उ.१० सू.१ लेश्यापरिणामनिरूपणम् ९११
भगवानाह-'एवं चउत्थो उद्देसओ' एवं पूर्ववत् चतुर्थ उद्देशकः 'पण्णवणाए चेव' मज्ञापनायाएव 'लेस्सापदे' लेश्यापदे सप्तदशसंख्यके 'णेयव्यो' नेतव्यः ज्ञातव्यः,तथाच प्रज्ञापनायां लेश्याया वक्ष्यमाणपरिणामादिविषयकचतुर्थोद्देशकार्थसंग्रहाय अवधिप्रदर्शनपूर्वकं द्वारगाथामाह-'जाव-परिणाम-वण्ण-रस-गंधसुद्ध-अपसत्थ-संकिलिठु ण्हा । गइपरिणाम-पएसो-गाहू-वग्गणा-हाणमप्पबहु इति । यावत्-परिणाम-वर्ण-रस-गन्ध-शुद्ध-अप्रशस्त-संक्लिष्टो-ष्णाः, गति परिणाम प्रदेशा-ऽवगाह-वर्गणा-स्थान अल्पबहुत्वम्' इति, एवञ्चोक्तद्वारगाथार्थ विशदी करणाय यावत्करणात् मज्ञापनायाः संगृहीतं पतिपाद्यते-'तागंधत्ताए, तारसत्ताए, ताफासत्ताए, भुजो भुजो परिणमति ? हंता, गोयमा ? कण्हउसके गंध जैसे गंधवाली होजाती है ? इस प्रकार गौतमने जब प्रभुसे प्रश्न किया तब प्रभुने इसके उत्तरमें कहा कि 'एवं चउत्थो उद्देसओ' पूर्वकी तरह चौथा उद्देशक 'पण्णवणाए चेव' प्रज्ञापना का ही जो कि सत्रहवें 'लेस्सापए' लेश्यापदमें कहा गया है यहां इसके उत्तरमें जानने योग्य है । प्रज्ञापनाके चतुर्थ उद्देशकमें लेश्याके परिणाम आदिकोंका संग्रह किया गया है। इसीलिये सूत्रकारने उस उद्देशकको यहां जानने के लिये कहा है। इन परिणाम आदिकों को संग्रह करनेवाली द्वार गाथा इस प्रकारसे है 'परिणाम-वण्ण-रस गंध-सुद्ध-अपसत्थ-संकिलिष्टु-हा। गइ परिणामपएसोगाहू वग्गणा ट्ठाण मप्पबहु' इस द्वारगाथाके अर्थको विशद करनेके लिये ही यहां 'जाव' पदका प्रयोग किया गया है। 'यावत्' पद यह प्रकट करता
मडावीर प्रभु तेन। २मा प्रमाणे उत्तर मापे छ- 'एवं चउत्थो उदेसओ पण्णवणाए लेस्सापए णेयव्यो' PAL Yadal समाधान भाटे प्रज्ञापनासूत्रमा मापेक्षा સત્તરમાં લક્ષ્યાપદને ચેાથે ઉશક કહેવું જોઇએ. પ્રજ્ઞાપનાના ચોથા ઉદશકમાં લેસ્થાના પરિણામ આદિનું પ્રતિપાદન કર્યું છે- તે કારણે સૂત્રકારે અહીં તે ઉદ્દેશકને ઉલ્લેખ ये 2. ते परिणाम मानो सड ७२नारी द्वा२॥था मा प्रभारी छ– 'परिणाम, वण्ण, रस, गंध, सुद्ध, अपसस्थ, संकिलिठु-हा गइ, परिणाम, पएसो, गाहू, वग्गणा, ठाणमप्पबहु' मा वाथाना मर्नु स्पष्टी४२९१ ४२वाने भाटे मही 'जाव' पहने। प्रयोग थयेछे. 'यावत्' ५६ मताव छ , AL Rथामा આવતાં પદેનું પ્રતિપાદન પ્રજ્ઞાપનાસૂત્રના ચેથા ઉદેશકમાં કરાયું છે. તે એ દ્વારેની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩