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भगवतीसो अर्धत्रयोदशयोजनशतसहस्राणि. यथा शक्रस्य वक्तव्यता तृतीयशतके तथा ईशानस्यापि यावत्-अर्चनिका समाप्ता, चतुर्णामपि लोकपालानां विमाने विमाने उद्देशकः, चतुर्षु अपि विमानेषु चत्वारः उद्देशाः अपरिशेषाः, नवरम्-स्थिती नानात्वम् , आधौ द्वौ त्रिभागोनौ पल्योपमौ धनदस्य भवतो द्वौ चैव, द्वौ सत्रिभागौ वरुणस्य, पल्योपमम् यथाऽपत्यदेवानाम् ॥ सू० १॥ हजार योजन आगे जाने पर ठीक इसी स्थान पर देवेन्द्र देवराज ईशानके लोकपाल मोम महाराज का सुमन नामका महाविमान स्थित है । (अद्धतेरस जोयणसयसहस्साइं जहा सकस्स वत्तव्वया तईयसए तहा ईसाणस्स वि जाव अचणिया सम्मत्ता) इसकी लंबाई चौडाई साडा चार लाख योजन की है इत्यादि समस्त कथन तीसरे शतक में कही गई बक्तव्यता के अनुसार ईशान के संबंध में भी यावत् अर्चनिका की समाप्ति तक कह लेना चाहिये । ( चउण्हं वि लोगपालाणं विमाणे विमाणे उदेसओ) इस तरह चारों लोकपालों के प्रत्येक विमानमें एक एक उद्देशक जानना चाहिये । (चऊसु वि विमाणेसु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा) अतः चारों विमानों में इस प्रकार से चार उद्देशे समाप्त हो जाते हैं । (नवरं) विशेषता यही है है कि (ठिईए नाणत) स्थितिकी अपेक्षा से भेद हो जाता है जैसे (आदिदुय तिभागूण पलिया धणयस्स होति दो चेव, दो सतिभागा वरुणे पलियमहावच्च देवाणं) आदिके दो लोकपालों की स्थिति तीन हेपरा थानना aasa सोम नाम महाविमान भावे छे. (अद्धतेरस जोयण सयसहस्साइं जहा सक्कस्स वत्तव्वया तईयसए तहा ईसाणस्स वि जाव अच्चणिया सम्मत्ता) ते सुमन भविमानना am पडा १२सास योजना छ. ते વિમાન વિષેનું સમસ્ત કથન ત્રીજા શતકમાં, કેન્દ્રના લેકપાલ સેમના વિમાન વિષેના કથન અનુસાર સમજવું. અર્ચનિકાની સમાપ્તિ પર્યન્તનું કથન ગ્રહણ કરવું.
(चउण्हं वि लोगपालाणं विमाणे विमाणे उसओ) में प्रभारी थारे उपासना प्रत्ये: विभान विषने। मे मे As agो. (चऊस वि विमाणेस चत्तरि उद्देसा अपरिसेसा) 0 रीते सारे विमानाना पर्थनमा यार अशी ५२ थाय छे. (नवरं) ५ तेमा माटो ३२३२ छ. (ठिईए नाणत्तं) स्थितिनी दृष्टि ३२।२ रहेको छ. म (आदिदुय तिभागूणा पलिया धणयस्स होति दो चेव, दो सतिभागा वरुणे पलियमहावच्च देवाणं) पडसा रे auart स्थिति
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩