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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. ८ सू. १ भवनपत्यादि देवस्वरूपनिरूपणम् ८६९ रूपश्च यक्षेन्द्रौ - 'पुण्णभद्देय अमरवई माणिभद्दे' पूर्णभद्रः, अमरपतिः, माणिभद्रश्च, राक्षसेन्द्रौ 'भीमे तहा महाभीमे भीमस्तथा महाभीमश्चः किन्नरेन्द्रौ - 'किन्नरfigure खलु' किन्नरः, किम्पुरुषश्च खलु, किम्पुरुषेन्द्रौ 'सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे' सत्पुरुषः, खलु तथा महापुरुषः महोरगेन्द्रौ - 'अइकाय- महाकाए' अतिकायः महाकायश्च गन्धर्वेन्द्रौ - गीअरईचेव गीअजसे' गीतरतिः, गीतयशाश्चैव; 'एए वाणमंतराणं देवाणं' 'एते उपर्युक्ताः वानव्यन्तराणां देवानाम् इन्द्रा वतन्ते । अत्र लोकपालाः न भवन्ति एवं ' जोइसिआणं' ज्योतिषिकाणाम् 'देवाणं' देवाहै । 'सुरुवपडिरुव ' सुरूप और प्रतिरूप ये दो इन्द्र भूतोंके है । पुण्णभद्देय अमरवई माणिभद्दे ' पूर्णभद्र और अमरपति, माणिभद्र ये दो इन्द्र यक्षोंके है । भीय तहा महाभीमे य' भीम और महाभीम ये दो इन्द्र राक्षसो के है, 'किन्नर किंपुरिसे खलु ' किन्नर और किं पुरुष ये दो इन्द्र किन्नरोंके है । ' सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे' सत्पुरुष और महापुरुष ये दो इन्द्र किं पुरुषोंके हैं । काय महाकाए' अतिकाय और महाकाय ये दो इन्द्र महोरगो के हैं । C " " अइ 4 गीयरई चेव गीयज से' गीतरति और गोतयश ये दो इन्द्र गन्धर्वो के हैं। 'एए बाणमंतराणं देवाणं' ये पूर्वोक्त इन्द्र वानव्यन्तर देवों के हैं । ' लोकवर्ज्याः व्यन्तरज्योतिष्काः ' के अनुसार यहां व्यन्तर निकाय में लोकपाल नहीं होते हैं । इस लिये दो दो इन्द्र ही व्यन्तरोंके ऊपर आधिपत्य करते हैं। 'जोइसियाणं देवाणं दो देवा पिशायना में इन्द्रो छे. 'सुरूव पडिरूव' सुश्य भने अतिश्य से लूतोना में इन्द्रोछे 'पुण्णभदेय अमरवईमाणिभद्दे भद्र भने अमरपति भाभि को यक्षीना मेन्द्रो छे. " एए 'भीमे य तहा महाभीमेय' लीभ अने महालीम, मे राक्षसोना मेहन्द्र छे. 'किन्नर किंपुरिसे खलु' छिन्नर भने डिपुरुष, मे छिन्नरीना मे धन्द्र छे. 'सप्पुरिसे खलु तहा महापुरिसे' सत्पुरुष भने महापुरुष, यो ङियुरुषाना मे न्द्रो छे 'अइकाय महाकाए' अतिअय मने मडाडाय, मे महोरगोना मे न्द्रो छे. 'मीयरई चेत्र गीयजसे ' गीतरति भने गीतयश, मे गंधर्वोना में इन्द्रो छे 6 वाणमंतराणं देवाणं' अजथी लाने गीतयश पर्यन्तना उपर हर्शावेसा वानव्यन्तर हेवाना इन्द्रो छे. ‘लोकवर्ज्या व्यन्तरज्योतिष्काः , આ કથન અનુસાર ન્યન્તર નિકાયમાં લોકપાલો હાતા નથી. તેથી દરેક પ્રકારના વાનભ્યન્તર ધ્રુવે ઉપર અમ્બ્રે ઇન્દ્રોનું જ અધિપતિત્વ આદિ હાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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