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________________ ८६८ भगवतीसूत्रे इति । ते च उपयुक्ता एवेति, अथ व्यन्तरविषयक प्रश्नमाह-'पिसायाणं पुच्छा' इति पिशाचानामधिपति विषया पृच्छा भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'दो देवा आहेबच्चं' द्वौ द्वौ वक्ष्यमाणमकारौ देवौ आधिपत्यं कुर्वन्तौ 'जाव विहरंति' यावत् विहरतः, यावत्करणात् 'पौरपत्यं, स्वामित्वं, भर्तृत्वं, पालकत्वं पोषकत्वम्' इति संग्राह्यम् । तानेवाह-'तं जहा' तद्यथा-पिशाचेन्द्रौ'काले य महाकाले' काला; महाकालश्च; भूतेन्द्रौ 'सुरुव-पडिरूव' सुरूपः, पतिजल ७, त्वरित ८, काल ९, और आवर्त १०। ये प्रत्येक इन्द्र के प्रथम प्रथम लोकपाल हैं । जैसे असुरकुमार के इन्द्र के पहले लोकपालका नाम सोम है और नागकुमारों के इन्द्रके पहले लोकपालका नाम कालपाल है इस तरह सर्वत्र समझलेना चाहिये । अब प्रभु से गौतम कहते हैं कि हे भदन्त ! मैं अब यह जानना चाहता हूं कि-पिशाच जो कि व्यन्तर निकाय हैं उनके ऊपर कितने देव आधिपत्य करते हैं यहीबात 'पिसाया णं पुच्छा' इस सूत्रपाठ द्वारा व्यक्त की गई है इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-'गोयमा' हे गौतम ! 'दो देवा' दो दो देव पिशाचकुमारों के ऊपर ' आहेवच जाव विहरंति' आधिपत्य आदि करते है। वहां पर यावत्पदसे 'पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व, पालकत्व पोषकत्व, इन पदों का संग्रह किया गया है । 'तं जहा' इस विषयमें खुलाशा अर्थ इस प्रकार से है 'काले य महाकाले य' काल और महाकाल वे दो इन्द्र पिशाचों के सोम, [२] पास, [3] यित्र, [४] प्रम, [५] , [] ३५, [७] , [८] परित [૯] કાલ અને [૧૦] આવર્ત. આ રીતે પ્રત્યેક ઈન્દ્રના પહેલા લોકપાલનું નામ ઉપર મુજબ છે. જેમકે અસુરકુમારના ઈન્દ્રના પહેલા લોકપાલનું નામ સેમ છે, અને નાગકુમારના ઇન્દ્રના પહેલા લેક પાલનું નામ કાલપાલ છે. એ જ પ્રમાણે બીજા ઈન્દ્રોના પહેલા લોકપાલના નામ ચિત્ર, પ્રભ આદિ સમજવાં. હવે પિશાચ નામના વ્યન્તર દેવેના અધિપતિના વિષયમાં ગૌતમ સ્વામી महावीरप्रभुने मा प्रश्न पूछे छ- 'पिसायाणं पुच्छा' 3 महन्त! पिशायशुमारे। પર કેટલા દેવે અધિપતિત્વ આદિ ભેગવે છે? उत्तर- 'गोयमा!' गौतम! 'दो देवा' पिशायमा। ५२ मे हे। 'आहेवच्चं जाव विहरंति' मधिपतित्व AI Bाग . (मी 'जाव' पाथी पौर५त्य, स्वामित्व, अतृत्व, पाप, पौषत्व' या यह। अहए ४२शयां छ). (तंजहा) तभना नाम नीय प्रमाणे छ- 'कालेय महाकालेय ४० मने म नामना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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