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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.७ ख.५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८४५ 'भायणवुट्टीइवा' भाजनदृष्टिः इति त्रा, खीरखुट्टीइवा, क्षौरदुग्धवृष्टिः इति वा, 'सुकालाइवा' मुकालाः इति वा, दुक्काला 'इवा दुष्कालाः' इति वा 'अप्पग्धा इवा, अल्पार्धाः इति वा, अल्पमूल्याः पदार्था इत्यर्थः, 'महग्या इवा' महायो, इति वा महामूल्य पदार्थाः 'मुभिकखा इवा' मुभिक्षाः इति वा, सस्यसम्पत्ति परिपूर्णसमयाः इत्यर्थः, 'दुभिकखाइवा' दुभिक्षा इति वा, सस्यादिसम्पति हीन समयाः, कयविक्कया इवा' क्रयविक्रया इति वा, वाणिज्यव्यापारादि समयाः 'सन्निहीइचा' सनिधयः इति वा, घृतगुडादि वस्तूनां सम्यक तया स्थापनानि, 'संनिचया इवा' सभिचया इति वा, धान्यादि संग्रहा इत्यर्थः, 'निही इवा' निधयः इति वा, लक्षादि संख्यक द्रव्य स्थापनानि, 'निहाणाइ वा' निधानि इति वा, भूमिगत सहस्रादि द्रव्य स्थापनानि 'चिरपोराणाई वा' चिर पुराणानि इति वा बहुकाल प्रतिष्ठितत्वेन पुराणानि जीर्णशीर्ण प्रायाणि 'भायणबुट्टीइ वा' भाजनोंकीवृष्टी, 'खीरखुट्टीइ वा दुधकी वृष्टि, 'सुकालाइ वा' सुकाल, 'दुक्कालाइ वा दुष्काल, 'अप्पग्घाइ वा' अल्पमूल्य में पदार्थोंका मिलना, 'महग्याइ वा' बहु मूल्यमें पदार्थोंका मिलना 'सुभिक्खाइ वा सुभिक्षका सस्यरूप संपत्तिसे युक्त समयका होना, 'दुभिक्खाइ वा' दुर्भिक्ष सस्यादि सम्पत्ति से रहित समयका होना, 'कयविक्कयाइ वा' वाणिज्य व्यापार आदिका समय, 'सन्निहीइ वा घृत गुड आदि वस्तुओंको अच्छी तरहसे संग्रह करके रखना, संनिचयाइ वा, अनाजको संग्रह करके रखना, निहीइ वा, लाख आदिकी संख्यामें रुपये आदि द्रव्यका रखना, 'निहाणाई वा' भूमिमें हजार आदिकी संख्यामें रूप्या आदिको गाढकर रखना' 'चिरपोराणाई वा, बहुत समयसे गढी हुई रखी रहने के कारण मानानी ale, 'खीरवुट्टीइ वा दूधनी वृष्टि, त्याहि वैश्रम पालथी मात खता नथा. मने 'मुकालाइ वा' सुग, 'दुक्कालाइ वा' (०४१, 'अप्पग्याइ वा' सांधारी, महग्याइ' भांधवारी, 'सुभिक्खाइ वा' मनre wilsil छमछ। डावी, 'दुभिक्खाइ वा दुमिक्ष- Hair माहिना भGIRI, 'कयविक्कयाइ वा' पणिय व्यापार माहिना समय, 'सन्निहीड वा घी, गोहिनी सारी सड थवा, संनिचयाइ वा' मनाने संड थवे, 'निहीइ चा' सापानी सयामा नाना स था, 'निहाणाई वा' हुआ। सामो इपिंया मानि भूमिमा संधरी २४ा, 'चिरपोराणाइ वा घणा समयथी भीनमा हायेकी २९वाने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩