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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३.उ.७.५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८३७ महीणमार्गाणि इति वा, महीणगोत्रागाराणि इति वा, उस्सन्नस्वामिकानी इति वा, उत्संन्न सेतुकानि इति वा, उत्सनगोत्रागाराणि इति वा, श्रृङ्गाटकत्रिक-चतुष्कचत्वर-चतुर्मुख-महापथपथेषु वा, नगरनिर्धमनेषु वा, श्मशानगिरि-कन्दरा-शान्ति-शैलो-पस्थान-भवनगृहेषु संनिक्षिप्तानि तिष्ठन्ति, न तानि पीढियोंकी कमाई हुई द्रव्यराशि (पहीणसामियाइं वा, पहीणसेउयाई वा, पहीणमग्गाणि वा, पहीणगोत्तागाराई वा, उच्छण्णसामियाइं वा, उच्छण्णसेउयाइं वा, उच्छण्णगोत्तागाराई वा, सिंघाडग-तिग-चउक्क चच्चर चउम्मुह महापह-पहेसुवा नगरनिद्धवणेसुवा) कि जिसका स्वामी नष्ट हो गया है, संभाल करनेवाले मनुष्य जिसके थोडे रहे गये हैं, प्रहीणमार्ग जिसको प्राप्तिका मार्ग नष्ट हो चुका है, पहीणगोत्रागारजिसके स्वामियों के गोत्रोंके घर विरले रह गए हैं उच्छिन्नस्वामीक जिसके स्वामो बिलकुल नष्ट हो चुके हैं, उच्छिन्नसेतुक-जिसके ऊपर उनके मालिकोंकी सत्ता नहीं रही है, उत्सनगोत्रागार-जिनके धनीके गोत्रवालोका घर एक भी नहीं रहा हैं, तथा जो श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ एवं पथ इनमें पड़ी हुई है (सुसाण-गिरिकंदर-संति-सेलोवट्ठाण-भवनगिहेसु संनिक्खित्ताई चिट्ठति) श्मशानमें, पहाडकी कंदरामें, धर्मक्रिया करनेके स्थानमें, पहाडको काटकर बनाये हुए घरमें, सभा भवन में रहने के घरमें जमीनके धन, पेढी १२पढीनी भाऽना धनराशि, (पहीणसामियाइं वा, पहीणसेउयाई वा, पहीणमग्गाणि वा, पहीण गोत्तागाराइं वा, उच्छण्णसामियाई वा, उच्छण्ण सेउयाई वा, उच्छण्ण गोत्तागा राई वा, सिंघाडगतिग चउक्क चच्चर चउम्मुह-महापहपहेसुवा नगरनिद्धवणेसु वा) ना पाभी भरी ५२वार्या छ, जेनी सा रामना। मनुष्ये! ઘણું એાછા બાકી રહ્યા છે, પ્રહાણુમાર્ગ–જેની પ્રાપ્તિ માર્ગ નાશ પામ્યા છે, પ્રહણગાત્રાગાર-જેના સ્વામીના ગોત્રનાં ઘણું ઓછાં ઘરો જ બાકી રહ્યા છે, ઉચ્છિન્ન સ્વામીક–જેના સ્વામીને બિલકુલ ઉચછેદ નિાશ થઈ ગયો છે, ઉછિન્નસેતુક-જેના ઉપર તેના માલિકેની સત્તા રહી નથી, ઉત્સન્નત્રાગાર-જેના માલિકને ગેત્રવાળાનું એક પણું ઘર બાકી રહ્યું નથી, તથા જે શૃંગાટક, શિંગડાના આકારનો માર્ગ ત્રિક, [ત્રણ રસ્તા જ્યાં મળતા હોય તેવું સ્થાન, ચતુષ્ક, ચત્વર, ચતુમુખ, મહાપથ અને ५यमा ५3eी, (सुसाण-गिरिकंदर-संति, सेलोवट्ठाण-भवनगिहेसु, संनिक्खिताई चिटति) श्मशानभां, ५डाउनी शमः, धर्मस्थानाम, पाउने तरीन मनावमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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