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________________ ८१८ - भगवतीसगे घोषः' इत्यभिधीयते १५, 'एमेए पन्नरसा' एवम् उक्तपकारेण एते पूर्वोक्ताः यमस्य पुत्रस्थानीया देवाः पञ्चदशसंख्यकाः 'आहिया' आख्याताः कथिताः । अथ यमस्य तत्सम्बन्धि यथाऽपत्य देवानाश्च स्थितिमाह-'सक्करस णं' इत्यादि। शक्रस्य खलु 'देविंदस्स देवरण्णो देवेन्द्रस्य देवराजस्य ‘जमस्स महारण्णो' यमस्य महाराजस्य 'सत्तिभागं' सत्रिभागं पल्योपमस्य तृतीयभागसहितम् 'पलिओवमं' एक पल्योपमम् 'ठिई' स्थितिः आयुष्यम् ‘पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता कथिता 'अहावच्चाभिण्णायाणं' यथाऽपत्याऽभिज्ञातानाम् अपत्यसदृशत्वेनाभिमतानाम् उपर्युक्तानाम् 'देवाणं' देवानाम् ‘एग' एकम् 'पलिओवमं' पल्योपमम् 'ठिई' स्थितिः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, एवम् उक्तप्रकारेण 'महिड्ढिए' महद्धिकः 'जावजमे' यावत्-यमः 'महाराया' महाराजो वर्तते, यावत्करणात्-'महाद्युतिकः, महाबलः, महायशाः महानुभावः इत्यादि सर्व संग्राह्यम् ॥ सू० ३ ॥ हुआ बन्द कर देता हैं, इस कारण इसका नाम महाघोष ऐसा हुआ है, 'एमेए पन्नरसा' इस प्रकार ये पूर्वोक्त 'पन्नरसा' पन्द्रह १५ देव यमके पुत्र स्थानीय 'आहिया' कहे गये हैं। अब सूत्रकार 'सक्कस्स गं देविदस्स देवरणो जमम्स महारणो सत्तिभागं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' इस सूत्रपाठ द्वारा यह प्रकट कर रहे हैं कि देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराजकी जो स्थिति है वह त्रिभाग सहित एक पल्योपमकी है । तथा 'अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' अपत्य के जैसे माने गये उपयुक्त देवोकी स्थिति केवल एकपल्यौपमकी हैं। ‘एवं महिडूढीए जाव जमे महाराया' इस तरह उक्त प्रकारसे महान ऋद्धिवाले यावत् यें यम महाराज हैं। यहां 'यावत' पदसे 'महाद्यतिकः-महाद्युतिवाले. ભાગ કરતા નારક જીવોને, ભયંકર અવાજ કરીને પશુઓના વાડા જેવી જગ્યામાં પૂરી ना२ परमायामि देवाने भाष ४ छ, 'एमेए पनरसा आहिया' ५२।त १५ દેવોને યમના પુત્ર સ્થાનીય દેવો કહ્યા છે. वे सूत्र४।२ यम alsual स्थिति [मायु]र्नु नि३५५५ ४३ छे...'सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारणो सत्तिभागं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શક્રના બીજા લેકપાલ યમ મહારાજની સ્થિતિ વિભાગ સહિત એક ५८।५मनी ही छ. तथा 'अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' यम माना स्थानीय वोनी स्थिति में पक्ष्यापभनी छे. 'एवं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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