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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३उ.७सू.३ यमनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८१३ इति वा, 'संबाहमारी इ वा' संबाहमारी इति बा, 'सण्णिवेसमारी इ वा' सन्निवेशमारी इति वा, तत्फलान्याह-'पाणक्खया' इत्यादि । 'पाणक्खया' पाणक्षयाः 'जणक्खया' जनक्षयाः 'धणक्खया' धनक्षयाः 'कुलक्खया' कुलक्षयाः, 'वसणभूया' व्यसनभूताः 'अणारिया' अनार्या अधमाः उत्पाताः 'जे यावि अन्ने' ये चाप्यन्ये 'तहप्पगारा' तथाप्रकाराः तत्सदृशाः दुःखदायिनो वर्तन्ते, 'ण ते' न ते 'सकस्स देविंदस्स देवरणो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'जम स्स महारणो' यमस्य महाराजस्य 'अण्णाया' अज्ञाताः सन्ति, न केवलं ते यमस्यैव नाज्ञाता अपितु यमपरिवाराणामपि ते नाज्ञाता इत्याह-'तेसिं वा जममरकी का होना, 'संबाहमारीह वा' संवाहमें मरकीका होना, 'सनिवेसमारोईवा संनिवेशमें ये सब उपद्रव-उत्पात हैं और ये सब उपद्रव यमलोकपालकी जानकारीमें होते हैं । इनका फल यह होता है कि-'पाणक्खया' इनसे प्राणोंका क्षय हो जाता है, 'जणक्खया' मनुष्योंका विनाश होता है, 'धणक्खया' धनका क्षय होता है, 'कुलक्खया' कुलके कुल नष्ट हो जाते हैं, 'वसणभूया' ये सब उपद्रव दुःखदायी अधमाति अधम उपद्रव हैं-इसीलिये 'अणारिया' पापरूप हैं। तथा 'जे यावि अन्ने, दुःखदायी जो और भी दूसरे 'तहप्पगारा' इसी प्रकारके उपद्रव हैं 'ण ते सकस्म देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो अण्णाया, वे सब देवेन्द्र देवराज शक्रके लोकपाल यममहाराज के ज्ञानसे बहिर्भूत नहीं हैं, अर्थात् उसके द्वारा ज्ञात हैं, इन सब उपद्रवोंका ज्ञाता केवल यम ही है ऐसी बात नहीं है किन्तु यम के माश्रममा भ२४ी थी, 'संवाहमारीह वा सा भी थवी. 'सनिवेसमारीड वा' सनिवेशमा भ२४ी माह उपद्रवोनु थj पद्रवो सास યમ મહારાજની જાણ બહાર થતા નથી. હવે સૂત્રકાર ઉપરના ઉપદ્રવનું શું ५५ मा छे ते मताव छ-'पाणक्खया' ५।४त उपद्रवोथी मने पाना [onनवरोना] नाश थाय छ, 'जणक्खया' मनुष्यानो क्षय थाय छ, 'धणक्खया' धनने। क्षय थाय छ, 'कुलक्खया' भने सुजनो क्षय थाय छ, 'वसणब्भया" मा उपद्रवो guara मने अयममा मम डाय छे, तेथी 'अणारिया' ते ५५ ३५ छे. तथा 'जे यावि अन्ने तहप्पगारा' या ना ollon :महाया Buzा डाय छे 'ण ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो अण्णाया' દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શક્રના બીજા લોકપાલ યમ મહારાજથી અજ્ઞાત હોતા નથી—એ બધાં ઉપદ્રવ તેમના આધિપત્ય નીચે જ થતાં હોય છે. યમદેવ તે ઉત્પાતથી અજ્ઞાત નથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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