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भगवतीसूत्रे पाण्डुरोगा इति वा, 'हरिसा इ वा' अशी सि इति वा, 'बवासीर इति भाषाप्रसिद्धानि' रुधिरस्राविणो गुदारोगविशेषाः 'भगंदरा इ वा भगन्दरा इति वा, हिययमूला इवा' हृदयशूलानि इति वा, 'मत्थय मूला इवा' मस्तकशुलानि इति वा 'जोणिमूला इ वा' योनिशूलानि इति वा 'पासमूला इ वा' पार्श्व शूलानि इति वा 'कुच्छिमूला इ वा' कुक्षिशूलानि इति वा, 'गाममारी इवा' ग्राममारी 'महामारी' इति प्रसिद्धा, या हि ग्रामं मारयति सा तथोक्ता, एवमग्रेऽपि विज्ञेयम् 'आगरमारी इ वा आकरमारी इति वा, 'नगरमारी इ वा नगर मारी इति वा, 'णिगममारी इ वा' निगममारी इति वा, 'खेडमारी इ वा' खेट मारी इति वा, 'कब्बडमारी इवा' कर्बटमारी इति वा 'मडम्म मारी इवा' मडम्बमारी इति वा, 'दोणमुहमारी इ वा' द्रोणमुखमारी इति वा, ‘पट्टणमारी इवा' पत्तनमारी इति वा, पट्टनमारी इति वा 'आसममारी इ वा' आश्रममारी पाण्डुरोग' हरिसाइ वा' बवासीर- अर्ष-मशा समय२ पर उनमें से खून झरने लगता है। भगंदराइ वा' भगंदर यह भी गुदाका एक महाभयंकर रोग है-जो जीवकी समाप्ति के साथ समाप्त होता है। 'हिययमूलाइ वा' हृदयशूल, 'मत्थयसूलाइ वा' मस्तकशूल, 'जोणिसूलाइ वा' योनिशूल, पासमूलाइ वा पसलियोंका दर्द, 'कुच्छिसूलाइ वा' कुक्षिशूल-पेटका दर्द, 'गाममारीइ वा' ग्राममें मरकी होना, 'अगरमारीई वा' अगरमें मरकी का होना 'नगरमारीइ वा, नगरमें मरकी होना, 'निगममारीईवा' विषयमें महामारीका होना ‘खेडमारीइ वा' खेटमें मरकी होना, 'कव्वडमारीइ वा' कर्बटमें मरकीका होना, 'दोणमुहमारीइ वा' द्रोणमुखमें मरकी का होना, 'मडंबमारी इवा' मडंबमें मरकीका होना, 'पट्टणमारीइ वा' पट्टण-पत्तनमें मरकीका होना, 'आसममारीइ वा आश्रममें-तापसों के आश्रममें साइ वा' ७२स थो, 'भगंदराइ वा' भ ने। रोग था, 'हिययसलाइ वा'
यशुदा यj, 'मत्थयसूलाइ वा' भरत शुस थj, 'जोणिसूलाइ वा' यानिशुत थj, 'पासमूलाइ वा' पासणीमामा शूर यj, 'कुच्छिमूलाइ वा' क्षिशुस-पेटने। दुभावो थयो, 'गाममारीइ वा ममाहिम वेस, भ२४ी माहि गोसावा, अ करमार वा' मा मोहनारामानी वस्तीमा 'नगरमारीइ वा' नगरमा 'निगममारी इ वा ' निममा 'खेडमारीइ वा' भेटमा भडामारी (२, भ२४ी माहि रोगी) थवा, कवडमारीड चा, ममा भी दावी, 'दोणमुहमारीइ वा दोभुममा भीना वो थवा, 'मडंबमारीइ वा भक्षमा भरी थवी, 'पट्टणमारीइ बा' ५५ पित्तन]i भी 4वी, 'आसममारीइ वा'
श्री. भगवती सूत्र : 3