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________________ ७४४ भगवतीसगे पासइ हन्त, सत्यं जानाति, पश्यति । गौतमःपुनः पृच्छति-'से भंते ! हे भदन्त ! स अमायी अनगारः किं तहाभावं, यथायर्थ 'जाणइ, पासइ?' जानाति पश्यति ?' 'अण्णहाभाव' अन्यथाभाव विपरीतम् 'जाणइ, पासइ ?' जानाति, पश्यति ? भगवानाह-'गायमा !' हे गौतम ! 'तहाभाव' तथाभावं याथातथ्येन 'जाणइ, पासई' जानाति, पश्यति, 'नो अण्णहाभाव' नो अन्यथा भाव नो तद्वैपरीत्येन 'जाणइ, पासइ' जानाति, पश्यति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? तत् केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते ? भगवानाह-'गायमा !' हे गौतम ! 'तस्स णं एवं भवई' तस्य इस शंकाका समाधान करते हुए प्रभु गौतम से कहते है कि 'हंता जाणइ पासई' हां वह जानता देखता है। अब गौतम पुनःप्रभुसे पूछते है कि 'से भंते! किं जाणइ पासइ, तहाभावं जाणइ पासइ अण्णहाभावं जाणइ पास है भदन्त! वह भावितात्मा अमायी सम्यग्दृष्ठि अनगार तथाभावसे जानता देखता है ? कि अन्यथाभावसे जानता देखता है ? अर्थात् यथार्थरूपसे जानता देखता है ? कि विपरीतरूपसे जानता देखता है? इसका समाधान करते हुए प्रभु गौतम से कहते है 'गोयमा' हे गौतम ! वह 'तहाभाव जाणइ पासई' नो अन्नहाभाव जाणइ पामई' तथाभावसे-यथार्थरूपसे जानता देखता है, अन्यथाभावसे विपरीतरूपसे-नहीं जानता देखता है। 'से के टेणं एवं वुचई' हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते है कि वह तथाभावसे जानता देखता है, अन्यथाभावसे नहीं जानता देखता है ? इस गौतमके प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते है कि 'गोयमा' हे गौतम! ते प्रश्न महावीर प्रभु भा प्रमाणे ४१५ मापे छे-हंता, जाणइ पासई" હે ગૌતમ ! તે અણગાર તે વૈકિય રૂપને જાણી શકે છે અને દેખી શકે છે. प्रश्न-'से भंते ! किं जाणइ पासइ, तहाभावं जाणइ पासइ अग्णहाभावं जाणइ पासइ) महन्त! ते सम्यगृष्टि, अभायी, भावितात्मा गार ते वैश्यि३५ोने यथार्थ ३ये જાણે દેખે છે, કે અયથાર્થરૂપે જાણે દેખે છે : મહાવીર પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને જવાબ मापेछ 'गोयमा !! 3 गौतम ! 'तहाभावं जाणइ पासइ ते मगार त ३पाने तथा भावे (यथार्थ ३५) तणे छ भने मे छे, 'नो अण्णहाभावं जाणई पासइ) अन्यथामा (अयथार्थ३५) आता हेमता नथी-विपरीत३५ लता દેખતા નથી. प्रश्न... 'से केणटेणं एवं वुच्चइ ? महन्त ! ५ शा २२ मे ४ो छ। કે તે અણગાર તે રૂપને યથાર્થરૂપે જાણે દેખે છે, વિપરીતરૂપે જાણતે દેખતો નથી ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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