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________________ ७३८ भगवती सूत्रे गौतम ! तस्य एवं भवति एवं खलु अहं राजगृहं नगरं समवहतः, समवहत्य वाराणस्यां नगर्या रूपाणि जानामि पश्यामि' तत् तस्य दर्शने अविपर्यासो भवति तत् तेनार्थेन गौतम ! एवम् उच्यते । द्वितीयः आलापकः एवमेव, नवरम् वाराणस्यां नगर्याम् समवघातयितव्यः राजगृहे नगरे रूपाणि जानाति, पश्यति, अन आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि तथाभावसे उन्हें जानता देखता है, अन्यथाभावसे जानता देखता नहीं है ? (गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ, एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाई जाणामि पासामि) उसके मनमें ऐसा विचार होता है कि मैंने राजगृह नगरकी विकुर्वणाकी है और वाणारसी नगरीमें मैं इस समय स्थित हूं अतः वाणारसी नगरीमें स्थित हुआ मैं राजगृहनगर स्थित मनुष्यादिरूपों को जान रहा हूं और देख रहा हूं । ( से से दंसणे अविवच्चासे भवइ इस कारण हे गौतम! उसके दर्शन में विपरीतता नहीं होती है । (से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) इससे मैंने हे गौतम! ऐसा कहा है ! (बीओआलावगे एवंचेव) द्वितीय आलापक भी इसी तरह से समझना चाहिये । (नवरं वाणारसीए समोहणा नेयव्वो रायगिहे नयरे रुवाई जाणइ पासह) परन्तु इसमें विशेषता यही है कि यहां वाणारसी नगरीकी विकुर्वणा जाननी चाहिये और राजगृहनगर में स्थिति ( से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ ?) डेलहन्त ! आप था भरो मे उड છે કે તે અણુગાર તે રૂપાને તથાભાવે [યથા રૂપે ] જાણે દેખે છે, અન્યથાભાવે [अयथार्थ ३पे] लशुतो हेमतो नथी ? (गोयमा !) हे गौतम ( तस्स णं एवं भवह) तेना मनमा भेवेो विसार आवे छे है ( एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोर समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाई जाणामि पासामि ) મે રાજગૃહ નગરની વિદ્યુ॰ણા કરી છે, અને હું અત્યારે વાણારસી નગરીંમાં રહીને शनगृड नगरना वैडिय ३योने लगी- हेभी रखो छु . ( से से दंसणे अविवच्चासे भवइ) मा रीते तेन दर्शनमां [हेवामां] विपर्यासलाव - [ विपरीतता ] होतो नथी. ( से केणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) डे गौतम ! ते अरसे में मे प्रभा छु छे. (बीओ आलावगो एवं चेत्र) मीले आसाय याशु या अभागे ४ समन्वो (नवरं arrate समोहणा नेयव्त्रो रायगिहे नयरे रुवाई जाणइ पासs ) परन्तु અહીં વિશેષતા એટલી જ સમજવી કે વાણારસીની વિકુણા સમજવી, અને તે અણુગાર રાજગૃહ નગરમાં રહીને તે વિકુČણા કરે છે એમ સમજવું એટલે કે રાજગૃહ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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