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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.६सू.२ अमायिनोऽनगारस्य विकुर्वणानिरूपणम् ७३७ वाराणस्यां नगयाँ रूपाणि जानाति, पश्यति ? हन्त जानोति, पश्यति, स भदन्त ! कि तथाभावं जानाति, पश्यति ? अन्यथाभावं जानाति, पश्यति ? नो अन्यथामावं जानाति, पश्यति, तत् केनार्थेन भदन्त ? एवम् उच्यते ? (वेउव्विउलद्धीए) वैक्रियलब्धिद्वारा, (ओहिणाणलद्धीए) अवधिज्ञानल ब्धिद्वारा (रायगिह नयरं समोहए) राजगृह नगरकी विकुर्वणाकी-अर्थात् राजगृह नगरकी अपनी विक्रियाद्वारा उत्पत्तिकी, तो (समोहणित्ता) उत्पत्ति करके (वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ पासइ) क्या वह वाणारसी नगरीमें रहा हुआ होने पर भी राजगृह नगर संबंधीरूपों को जानता देखता है ? (हंता, जाणइ पासइ) हां गौतम ! वाणारसी नगरी में स्थित हुआ भी वह अमायी भावितात्मा सम्यग्दृष्टि अनगार विकुर्वित किये गये राजगृह नगरके विकुर्वित मनुष्यादिरूपोंको जानता देखता है। (से भंते ! किं तहाभावं जाणइ, पासइ अन्नहाभाव जाणइ, पासइ ? हे भदन्त ! क्या वह उनरूपों को यथार्थरूप से जानता देखता है, कि अन्यथाभावसे-अयथार्थरूप से जानता देखता है ? (गोयमा ! तहाभावं जाणइ, पासइ, णो अन्नहाभावं जाणइ पासइ) हे गौतम ! वह तथाभावसे जानता देखता है। अन्यथाभावसे जानता देखता नहीं है । (से केणटेणे भंते ! एवं बुच्चइ) हे भदन्त ! सभ्यष्टि, समायी, मावितात्मा २मारे (वीरियलद्धीए) पीय सन्धि वा (वेउबियलद्धीए) वैश्यिसEि AN, (ओहिणाणलद्धीए) गने अवधिज्ञानता , (रायगिहं नयरं समोहए) २।४] ना२नी विशु ४३री-मेट वैठियशतिवा२ २०४२ नगरनी श्यना ४३री. (समोहणित्ता ) मा रीते २१४ नगरनी विगुण ४शन (वाणारसीए नयरीए रूवाई जाणइ पासइ ?) वारसी नगरीमा २हीन શું તે વિકર્વિત રાજગૃહ નગરનાં મનુષ્યાદિ વિકુર્વિત રૂપને જાણી શકે છે, દેખી શકે છે? (हंता, जाणइ पासइ) , गौतम ! पारसी नामा २९सो ते २५मायी, सभ्यદૃષ્ટિ ભાવિતાત્મા અણગાર વિકુર્વિત રાજગૃહ નગરનાં વૈક્રિય રૂપને [મનુષ્યાદિ રૂપને आणी श छ-हेमी छ. . (से भंते ! किं तहाभाव जाणइ पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पासइ ?) હે ભદન્ત ! શું તે અણગાર તે રૂપને યથાર્થરૂપે જાણે દેખે છે, કે અયથાર્થરૂપે જાણે छ ? (गोयमा !) ले गौतम ! ( तहाभावं जाणइ, पासइ, णो अण्णहाभावं जाणइ पासइ) ते ॥२ ते ३थान यथा ३५ on हेमे छे-अयथार्थ ३५ જાણતે દેખતા નથી. श्री. भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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