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________________ ७२२ भगवतीसूत्रे भदन्त ! किं तथाभावं जानाति, पश्यति, अन्यथाभावं जानाति, पश्यति ? गौतम ! नो तथाभावं जानाति, पश्यति, अन्यथा भावं जानाति, पश्यति तत् केनार्थेन यावत्-पश्यति ? गौतम ! तस्य खलु एवं भवति, एषा खलु वाराणसी नगरी, एतत् खलु राजगृह नगरम्, एष खलु अन्तरा एको महान् जनपदवर्गः नो खलु एषा मम वीर्यलब्धिः, वैक्रियलब्धिः, विभङ्गज्ञानलब्धिः, ऋद्धिः, धतिः यशः, बलम्, वीर्यम्, पुरुषकारपराक्रमो लब्धः, प्राप्तः, अभिसमन्वागतः, तत् तस्य दर्शने विपर्यासो भवति, तत् तेनार्थेन यावत् पश्यति सू.१ जानता है और देखता है (से भंते! किं तहाभाव जाणइ पासइ ? अनहाभानं जाणइ पासइ?) हे भदन्त ! वह तथा भावसे जानता देखता है कि अन्यथाभाव से जानता देखता है ? (गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्नहाभाव जाणइ पासइ) हे गौतम ! तथाभाव से वह नहीं जानता देखता है किन्तु अन्यथाभाव से जानता देखता है। (से केणणं जाव पासइ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वह तथाभावसे नहीं जानता देखता है, अन्यथाभावसे जानता देखता है। (गोयमा ! तस्स खलु एवं भवइ, एस खलु वाणारसी नयरी एस खल रायगिहे नयरे एस खलु अंतरा एगे महं जणवयवग्गो, नो खलु एस महं वीरियलद्धि, वेउब्बियलद्धी, विभंगणाणलद्धी, इडूढी, जुत्ती, जसे बले, वीरिए, पुरिसकारपरकमे लद्धे, पत्ते, अभिसमण्णागए, से से सणे विवञ्चासे भवइ से तेणढेणं जाव पासइ) हे गौतम ! उसके मनमें ऐसा विचार आता हैं कि यह वाणारसी (से भंते ! किं तहाभावं जाणई पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ?) હે ભદન્ત ! તે તથાભાવથી [યથાર્થરૂપે તેને જાણે છે અને દેખે છે, કે અન્યથાભાવે [अयथार्थ ३५] and अने हे छ ? (गोयमा ! णो तहाभाव जाणइ पासइ) अन्नहाभावं जाणइ पासइ) गीतम! तथाभावे नहीं, ५ अन्यथामावणे हेभे छे. (से केणढणं जाव पासइ) हे महन्त ! ॥ ४ारणे मा५ मे । छ। ते तथा भावे नहीं पY अन्यथा मा onमे छ? ( गोयमा !) . गौतम ! (तस्स) खलु एवं भवइ, एस खलु वाणारसी नयरी, एस खलु रायगिहे नयरे, एस खलु अंतरा एगे महं जणवयवग्गो, नो खलु एस अहं वीरियलद्धी, वेउब्धि य लद्धी, विभंगणाणलद्धी, इइढो, जुत्ती, जसे, बले, वीरिए, पुरिसकार परकमे लद्धे, पत्ते, अभिसमण्णागए, से से दसणे विवच्चासे भषइ, से तेणगुणं जाव पासइ) गौतम! तेन मनमा मेवा विया२ भाव छ ' वाणासी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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