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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.५२.२ अभियोगिकस्याभियौगिकस्य निरूपणम् ७०५ इति सम्पूर्णप्रश्नालापकः, भगवानाह ‘एवं बाहिरए पोग्गले' एवम् उक्तरीत्या स बाह्यान् पुद्गलान् 'परिआइत्ता' पर्यादाय 'पभू' प्रभुः समर्थः उक्ततत्तद्रपमभियोक्तुमित्याशयः, गौतमः पुनः पृच्छति-'अणगारे णं भंते !' इत्यादि। हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावितात्मा 'एकं महं' एक महत् 'आसरूव वा,' अश्वरूपं वा 'अभिमुंजित्ता' अभियुज्य तद्रूपानुप्रवेशेन व्यापार्य 'अणेगाई जोअयाई' अनेकानि योजनानि 'गमित्तए' गन्तुम् 'पभू' प्रभुः समर्थः किम् ? भगवानाह 'हंता, पभू' हन्त प्रभुः, हे गौतम ! त्वदुक्तरीत्या गन्तुं स समर्थः, गौतमः पुनः पृच्छति-'से भंते !' इत्यादि । हे भदन्त! स भावितात्मा अनगारः 'कि आयड्ढीए गच्छइ' किम् आत्मर्या गच्छति, है- इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि ‘एवं बाहिरए पोग्गले उक्तरीति से वह भावितात्मा अनगर बाह्यपुदगलोंको 'परियाइत्ता' ग्रहण करके 'पभू' उक्त उन२ रूपोंकी अभियोजना करने के लिये समर्थ है। गौतमस्वामी प्रभुसे पुनः प्रश्न करते हैं 'अणगारे णं भंते! भावियप्पा' हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार 'ए महं' एक महान् 'आसरूव वा' घोडेके रूपकी 'अभिमुंजित्ता' अभियोजना करके 'अणेगाइ' अनेक 'योजनों तक गमित्तए पभू' जाने के लिये समर्थ है क्या इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-'हंता पभू' हां गौतम वह समर्थ है। अर्थात् जैसा तुमने प्रश्न किया है उसके अनुसार वह अनेक योजनों तक जाने के लिये शक्तिशाली है । गौतमपुन: इसी विषयको लेकर प्रभु से पूछते हैं कि-से भंते ! कि आयडूढीए गच्छइ' हे भदन्त ! वह भावितात्मा अनगार अपनी निजकी ऋद्धि से
___उत्त२-'एव बाहिरए पोग्गले' हे गौतम ! माय पुन 'परियाइत्ता ગ્રહણ કરીને “ ઉપરોકત રૂપની અભિલેજના કરવાને તે સમર્થ છે. ___प्रश्न-'अणगारे णं भंते भावियप्पा' हे मt-a ! भावितामा म॥२, 'एगं महं आसरूघवा' मे महान मश्वना३५नी 'अभिजुंजित्ता' मालियाना शन 'अणेगाई जोयणाई' भने यो नाना मत२ सुधी 'गमित्तए पभू पाने शुसमर्थ छ ?
उत्तर-ता. पभा गौतम ! समर्थ छ. मेरो मे ३१ने मलिચેજિત કરીને તે અનેક જનાના અંતરે જવાને સમર્થ છે.
- 'से भंते ! आयडूढीए गच्छइ महन्त ! मश्वना३५नी मनियाराना
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩