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ममेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ भगवता अग्निभूतेः कथनसमर्थनम् ५७ एवम् आख्याति, भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति-"एवं खलु गौतम ! चमरः असुरेन्द्रः असुरराजो महर्द्धिकः, एवं तच्चैव सर्व यावत्-अग्रमहिषीणां वक्तव्यता समाप्ता सत्यः एषोऽर्थः, अहमपि गौतम ! एवम् आख्यामि, भाषे, प्रज्ञापयामि, प्ररूपयामि, एवं खलु गौतम ! चमरः असुरेन्द्रः, असुरराजो यावत्-महर्दिकः स एव द्वितीयो गमो भणितव्यः, यावत्-अग्रमहिष्यः, सत्यः एषोऽर्थः, तदेवं भूई अणगारे एवमाइक्खइ) हे गौतम द्वितयगणधर गौतम अग्निभूति अनगारने जो तुम से ऐसा सामान्यरूप से ऐसा कहा है (भाइ) विशेषरूप से ऐसा कहा है (पण्णवेइ) इस प्रकारसे जताया है (परुवेइ) इस प्रकारसे प्ररूपित किया है कि (एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्डीए एवं तं चेव सधं जाव अग्गम हिसीणं वत्तव्वया समत्ता ) हे गौतम ! वायुभूते ! असुरेन्द्र असुरराज चमर बहुत बड़ी ऋद्विवाला है, इत्यादि इस विषयक सब कथन यहां तक का कि जहांतक अग्रमहिषीविषयक वक्तव्यता समाप्त हुई है सो (सच्चणं एसम?) यह सब उनका कथनरूप अर्थ सत्य है। (अहं पि णं गोयमा! एवमाइक्खामि भासामि पण्णवेमि परूवेमि) हे गौतम! मैं भि ऐसा सामान्य रूपसे कहता हूं, ऐसा ही विशेष रूप से कहता हूं, ऐसा ही जताता हूं और ऐसा ही प्ररूपित करता हूंकि (चमरे असुरिंदे असुरराया जाव महिडीए सोचेव बितीओ गमो भाणियव्वो) असुरेन्द्र असुरराज चमर बहुत बड़ी ऋद्धिवाला है दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अणगारे तव एवमाइक्खइ) ॐ गौतम wlon गधर गौतम निभूतिम्मे तमने भा प्रभारी ने सामान्य३५ ४यु छ, (भासइ) विशेष ३५ ४९यु छ, (पण्णवेइ) मता०यु छ भने (परूवेइ) ५३५॥ ४६॥ एवं खलु चमरे असुरिंदे असुरराया महिडीए एवं तं चेत्र सव्वं जाव अग्गमहिसीणं वत्तव्वया सम्मता) ॐ गौतम वायुभूति मसुरेन्द्र मसु२२॥२४ यम२ घl मारे સમૃદ્ધિવાળે છે, ઈત્યાદિ અગ્રમહિષીઓ (પટ્ટરાણીઓ) સુધીનું સમસ્ત કથન પર एसमठे) सत्य छ (अहं पि णं गोयमा एकमाइक्खामि भासामि पागवेमि परूवेमि) 3 गौतम पy मेमा ४ छु मेमन विशेष ३५ ४ छु भन् सभा छ भने मे ४ प्रमाणे ५३५९॥ ४३ छु : (चमरे असुरिंदे असुरराया जावहिडीए सोचेव बिइओ गमो भाणिययो) सुरेन्द्र मसु२२।०४ सभ२
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૩