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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४ सू.५ विकुर्वणाविशेषवक्तव्यतानिरूपणम् ६८७ 'विउविस्सति वा' विकावष्यति वा । गौतमः पुनः पृच्छति-'से जहानामए' इत्यादि । हे भदन्त ! तद्यथा नाम ' केइ पुरिसे' कोऽपि पुरुषः कश्चिदेकः पुरुषः 'एगओ पडागं' एकतः पताकां 'काउं' कृत्वा हस्तेन एकपार्श्वध्वजयुक्तपताकां घृत्वा 'गच्छेज्जा' गच्छेत् गतिं कुर्यात् करोति वा 'एवामेव' एवमेव तथैव 'अणगारे त्रि' अनगारोऽपि 'भावियप्पा' भावितात्मा 'एगओ पडागा इत्थ किच्चगएणं' एकतः पताकाहस्तेकृत्यगतेन एकपाश्वस्थितध्वजयुक्तपताकाधारिपुरुषाकारेण 'अप्पाणेणं' आत्मना वैक्रियस्व स्वरूपेण 'उड्ढं' ऊर्ध्वम् 'वेहायसं विहायसि आकाशे 'उप्पएजा' उत्पतेत् ? भगवानाह-'हंता, और ढाल धारण कर रखी है ऐसे इतने रूपोंको विकुर्वणा शक्तिसे निष्पन्न कर सकता है कि जिससे वह समस्त जंबूद्वीपको आकीर्ण (व्याप्त) व्याकीर्ण-(विशेष व्याप्त) कर सकता है परन्तु ऐसा आजतक उसने किया नहीं है, न वर्तमान में करता है और न भविप्यत् कालमें ही वह ऐसा करेगा-यह तो उसकी शक्ति मात्रका प्रदर्शन किया है। यदि वह चाहे तो ऐसा कर सकता है-ऐसी शक्ति उसमें है। अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि 'से जहा नामए' जैसे 'केइ पुरिसे' कोई पुरुष 'एगओ पडाग' हाथ से एक पार्श्व में ध्वजयुक्त पताका को 'काउं' पकड करके 'गच्छेजा' जाता है चलता है, 'एवामेव' इसी तरह 'भावियप्पा अणगारे वि' भावितात्मा अनगार भी (एगओ पडागा हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं' एकपार्श्व में स्थित ध्वजा से युक्त पताकाको धारण किये हुए पुरुष के आकार वाले अपने वैक्रिय स्वरूप से क्या 'उड्ढ बेहायसं' ऊँचे आकाश में 'उप्पएजा' અને ઢાલ ધારણ કરનારા એટલાં બધાં વૈક્રિય પુરુષરૂપનું નિર્માણ કરી શકે છે કે તે રૂપિ વડે તે સમસ્ત જંબુદ્વીપને આકીર્ણ (વ્યાસ), અને વ્યાકીર્ણ (વિશેષ વ્યાસ) કરી શકે છે. પણ એવું આજ સુધી કદી પણ તેણે કર્યું નથી, વર્તમાનમાં પણ એવી વિકુર્વણા તે કરતા નથી, અને ભવિષ્યમાં પણ કરશે નહીં. તેની શક્તિનું પ્રદર્શન કરવાના આશયથી જે સૂત્રકારે ઉપરનું કથન કર્યું છે, જે તે ધારે તે એવી વિદુર્વાણ કરવાની શક્તિ તેનામાં અવશ્ય છે प्रश्न-'से जहानामए के परिसे महन्त ! वी शत पुरुष यो पटा मे युत ताडन डायमा काउं' ५४ीने 'गच्छेज्जा' या छ, 'एवामेव' मेवी शते 'भावियप्पा अणगारे वि एगओ पडागा हस्थकिच्च गएणं अप्पाणेणं उडूढं वेहायसं उप्पएज्जा ?' मे माणुमे १४युत पता શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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