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________________ ६८६ भगवतीस्त्रे पृच्छति - 'अणगारे णं भंते ! इत्यादि । हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावितात्मा 'केचइआई' कियन्ति कियत्संख्यकानि 'असि चम्महत्यकिच्च गयाई' असि - चर्मपात्रहस्ते कृत्यगतानि हस्तधृतखङ्गादिविशिष्टानि ' रुवाई रूपाणि 'विउच्चित्त' विकुर्वितुम् विकुर्वणया निष्पादयितुम् 'पभू' प्रभुः समर्थः किम् ? भगवान् उत्तरयति' से जहानामए' इत्यादि । हे गौतम ! तद्यथा नाम कश्चिद 'जुवाणे' युवा 'जुबई' युवतिं ' हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा ' हस्तेन हस्ते गृह्णीयात् युक्त्या सह संसक्ताङ्गुलितया संलग्नो भवेत् 'तंचेव जान' तच्चैत्र यावत् सर्व पूर्ववदेव बोध्यम्, 'विउन्निसुवा' व्यकुर्वेद वा, 'विउच्चतिवा' विकुर्वति वा पुनः प्रश्न करते हैं कि 'भावियप्पा अणगारे णं भंते ।" हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार 'केवइयाई कितने 'असिचम्महत्यकिश्चगयाई' हाथों में धारणकर रखी है तलवार और ढाल जिन्होंने ऐसे 'रुवाई' रूपोंको 'विविए' वैक्रियसमुद्घात द्वारा बनाने के लिये 'पभू' समर्थ है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं 'से जहा नामए' इत्यादि - जैसे 'जुवाणे' कोई युवा पुरुष 'जुबई' युवती स्त्रीको 'हत्थेणं' हाथ से 'हत्थे ' हाथमें 'गेण्हेजा' पकड़ लेता है अर्थात् उस युवती को पकड़ने में जैसे युवा पुरुषको किसी भी प्रकार से परिश्रम आदि नहीं पडता है और युवति के साथ जैसे वह संलग्न हुआ सा प्रतीत होता है इसी तरह से 'तं चैव जाव- बिडविंस या, विउब्विति वा, विव्विस्संति वा, यहां पर सब कथन पहिले की तरह से ही जानना चाहिये - अर्थात् भावितात्मा अनगार हाथों में जिन्होंने तलवार अ -- भावियप्पा अणगारेण भंते ! हे महत ભાવિતાત્મા અણુગાર, 'केवइयाई असिच महत्थ किञ्चगयाई रुवाई विउब्वित्तर पभू' यि खमुहघात ક્રિય સમુદ્દાત દ્વારા કેટલાં તલવાર અને ઢાલને ધારણ કરનારા વૈક્રિયપુરુષ રૂપાનું નિર્માણ કરી શકવાને સમર્થ છે ? उत्तर - ' से जहा नामए जुवाणे' नेवी रीते अ युवान पुरुष 'जुबई ' अ युवतीने 'हत्थेण' हाथथी 'हत्थे गेοहेज्जा' पडी सेवाने समर्थ होय छे (पेटले કે તે યુવતીને પકડી લેવામાં તે પુરુષને કાઇ ખાસ પરિશ્રમ પડતા નથી અને યુવતી ने साथै ते स ंलग्न थयेसो होय मन लागे छे) 'तं वेब जाव विउबिसुवा, विउन्विति वा, बिउव्विस्संति वा' इत्याहि समस्त अथन भागण सुनमन समनबुं. કહેવાનું તાત્પ એ છે કે ભાવિતાત્મા અણુગાર પાતાની વિકુણા શકિતથી, તલવાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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